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________________ आज पश्चिमी फिल्मों के जोश में प्रेमी अपनी प्रेमिका से मिलता पीछे है पहले उसके शरीर का रस पाने को व्यग्र है । उनका प्रेम रह नहीं पाता क्योंकि यह दुर्जेय आत्मा बहुत स्वार्थी है । इसका कोई मूर्ख नहीं बना सकता । रस लेने के बाद यह जान जाती है कि प्रिया के इस संसारी रूप और उममें कोई एकता नही । जहां मयम है वहां वह ऐमी शारीरिक भूल नहीं करेगा । वह शरीर की कामना का बलिदान करेगा। जानेगा कि यह अमन् की कामना थी। जो दीख रहा था उसकी कामना थी। इममे उसका प्यार रसविहिन नहीं होगा। बल्कि उसके भीतर प्रिया सभी माधुर्यों के साथ जगेगी। वह इस संयम से उसे और अच्छी तरह प्राप्त कर लेगा। संयम के मायने ये नहीं कि हम औरों के और अपने बीच कोई बनावटी रोक लगा रहे हैं । हम केवल इतना जान रहे है कि औरों का जो रूप हमें दीख रहा है वह संमार-प्रपंच में पड़ी उनकी परछाई है। हम उस प्रतिविम्ब में मुग्ध हो रहे हैं । यदि हम उसे असन् जान लें तो उनका मन् रूप हममे ही अभिन्न हो हमारे भीतर जगेगा। वह हमारे अकेलेपन को दूर करेगा। उम स्थिति में हम उमके वाह्य रूप का ग्ग ले सकेंगे बिना लिप्त हुए। महावीर एक ऐसे ही प्रेमयज्ञ की बात कर रहे है जहां यह संमार प्रेमियों को उलझाना नही बल्कि उनके पीछे चलता है। उनके दुःख वे दुःख नहीं हैं जो मंमार देता है। ___ "वे गमे रोजगार नही है, गर्म इश्क है" महावीर कहते हैं कि उम गमे इश्क को जगा कि ग़मे रोजगार का पता ही न रहे। "न होना गमे इश्क तो गमे रोजगार होना" । महावीर कहते हैं इस तरह गर्म हम्नी में नजान नहीं मिलती। जब नक प्रिया केवल गरीर दीग्वंगी प्रिया दर्द वनकर दिल में न जग सकेगी। दर्द न होगा तो मुहब्बत न होगी।
SR No.010572
Book TitleVarddhaman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmal Kumar Jain
PublisherNirmalkumar Jain
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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