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________________ होगा। महावीर कहते है कि वही जीवन मोक्ष-मार्ग है जो पूरी मम्वेदनाओं, महानुभति, दया. क्षमा व प्रेम के आवेगों को व्यक्त कर रहा है। यही पूरी तरह जीना है। यही जीवन को वह हा' (yea) है जो नीन्मे का सुपरमैन जगथप्ट कहना चाहता है । परन्तु यह मम्भव कम हो? ये मारे आवेगनोरुक गये है गरीर में जमे किमी मत्र के अमर में पूरे नगरवामी पत्थर के हो गये थे । इमी तरह ये आवेग पत्थर के हो गये है । मब स्थिर हैं। इसका एक मात्र कारण यह अविश्वाम कीपजी है जो अनभवों की निजारत में हमाग जीवन कमा रहा है । दग पनी का एक मेरू पर्वत हमारी नाभि में उग रहा है। इसमें टकगकर मारे मानवीय भावनाओं के आवेग लौट जाते हैं। वे आवेग जो हमारे जीवन को मोट देने. जो हमें महमम कगते कि हम जी रहे है, वे राम मंझ पर्वत पर अपने गिर पटक कर लौट जाते है । अत: वह प्रेम, मदभावना, मंत्री जो हम बाद के वर्षों में लोगों को देन है मब व्यापार, डिप्लोमगी के रूप ह । उममं न वह महजता है, न आत्मीयता है जिसके बिना जीवनतम् मग्न रहा है। पर मारे मनप्य विवश है क्योंकि अविश्वास का मंस नाभि में उठ गया है इमे कैम हटायें । इमे नजरअंदाज करन हे नो यथार्थ में पाव उघड जाते है। एक काल्पनिक दुनियाँ में हम जीने लगते हैं। औगें मनाने और भीट जाते है । मामहिक जीवन पर हम कोई अमर नहीं डाल मकने । हमाग जीना जीवन-प्रवाह में कोई अच्छी नग्ग पैदा नहीं करना । हम जीवन को बिना अर्घ दिये कृतघ्नों की भाति चले जाते है । इसके अलावा हम अमफल भी रहते है। यह कहना कि दुनियाँ में बईमान, ठे, चापलम ही मफल होते है कुछ जंचना नहीं। वे इमलिये मफल होने है कि मच्ची वेदना, महानुभूनि, प्रेम रखने वाले दुनियाँ में रहने ही नहीं। ये लोग कम से कम झूठी रंगीनियों ही में जीवन को मलायम किये हुए है। इस दुनियां से भाग जाना, क्योंकि यह झूठी और बंध का कारण है, यक्निमंगत वात नहीं। दुनियाँ है क्या? मोती हुई चेतनाओं का मागर । इममें हम कहां जायेंगे? जंगलों में भी यह है । हिमाच्छादिन चोटियों पर भी यह है । 51
SR No.010572
Book TitleVarddhaman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmal Kumar Jain
PublisherNirmalkumar Jain
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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