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________________ घागय माथ-माथ चल रही है। यह गक्ति हमे बार-बार मां की ओर खींचनी है क्योंकि वहा दम व अजब सोनमलना, प्रेम और पवित्रता के मियां ह जिन्हें पीकर यह पृष्ट हो जाती है। परन्तु यदि यह शक्ति गां का त्याग नहीं करंगी नो यह आक्रामक नहीं होगी। यही वह गक्नि है जिम लेकर एक नीर्थकर मोक्ष के लिये कच करता है। मा का त्याग कर देने के बाद यह किन अपने को एक अन्य में पाती है। वह मुखद अनीन नथा पूर्वजों के जीवन में मिलनी अमनघाग, जो मा के प्रति आमक्ति के कारण हम महज मलभ है, वह मन्याम लेने पर, मा से मम्बन्ध विच्छेद कर लेने पर समाप्त हो जाती है। उसके पश्चात् आत्मा अपने को एक गन्य में पानी है। यह कर यथार्थो का गन्य है। मघर दुलार में ढका जीवन मा मे मम्बन्ध विच्छेद करने ही खत्म हो गया। अब आत्मा भयानक अंधकार में अकेली वडी है। हर यथार्थ कर, पने दान निकालकर पिशाचों की नग्ह हम रहा है। भयानक गीत, ऊणना और हिमक पण आत्मा को चारो ओर में घेर लेने है । आत्मा की दम स्थिति को भाग्नीय ऋषियों ने नपम्या कहा है। इन भयानक अनिरजित यथार्थो का मामना महावीर ने १२ वर्षों तक किया और तब उनकी आत्मा यथार्थों में मस्त हुई। तब उन्होंने उम मत्य को जाना जो यथार्थ ओर म्वग्न दोनों में भिन्न है । यह उनकी आत्मा का पुनर्जन्म है मा के ही गर्भ में । जग कहना है कि इम नह पुनर्जन्म प्राप्त कर बिरले मनप्य अलोकिक माहम का परिचय देते हुए अमर जीवन की प्राग्नि करने है। आज का मनोविज्ञान बनाना है कि इस तरह मानिक (Symbolic ) गृह त्याग प्रत्येक गृहस्थ के लिये एक मफल जीवन की प्राप्ति हेतु अन्यन्त आवश्यक है । इसके विना आत्मा की लहर चट्टानो से नही टकगती, आगे के मार्ग नही खोजती। महावीर का केश लोच भी इमी मे मम्बद्ध एक माकेनिक क्रिया है । केश मुर्य गक्ति लिबिडो के प्रतीक है। केगो के इम महत्व को बाइबिल में भी सेममन की कहानी के रूप में स्वीकार किया गया 46
SR No.010572
Book TitleVarddhaman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmal Kumar Jain
PublisherNirmalkumar Jain
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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