SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मोड़ा जाय । चरित्र ता को बढ़ना है। महावीर कहते है कि टमकी शक्तिएं अनेकों शक्तियों में उद्भ्रान्त होंगी और उनमें विरोधी शक्तियों का जन्म होगा। यदि हम दमकी मलभन एकता को नहीं जानेगे, यह जीवनशक्ति जो हम में जोर मार रही है यह हमें विनाग की ओर ले जायेगी, प्रलय की ओर ले जायेगी यदि हम इगम उद्देश्य की जाग्रति नही करेंगे। और उद्देश्य की जाग्रति इममें होनी है तब जब इसमें अनेकों ज़िद करती धागे को मना लें और उन्हें समझा मके कि वह जो केन्द्रिक जोर है उसकी पूर्ति में इन मबकी पूर्ति हो जाती है । यह बहुत कठिन कार्य महावीर ने अपने हाथों में लिया था।नगेवगंगा ने जिस (इलानवाइटल) जीवनशक्ति को निरंकुश, अगभ्य, विहमना प्रवाह कहा था महावीर ने उमी में उद्देश्य का आह्वान किया और उमे मानवीय स्वरूप में मोटा। यह वर के माथ महयोग था। वे जो सोचते हैं कि महावीर ने पौगणिक ज्ञान का विरोध किया वे भी गलन हैं। वास्तव में महावीर उम परम्पग के पुत्र थे। उगक विरोध प्रवाह नहीं थे। पुगणों में मनप्य की रचना के पश्चात् ब्रह्मा ने मनाय को छोड़ दिया कि वह उनके उद्देश्य की पूर्ति करे । मन के समक्ष भी वही जीवन प्रवाह अनर्गल गोरों में भग हुआ मचल रहा था। भगवान महावीर मनपुत्र ने उमे देवा। वही वह अनन्य नीव उज्ज्वल निल प्रवाह था जिसे हेनरीवर्गमां देख रहा था। परन्तु दोनों की दृष्टि में अन्तर था। महावीर ईश्वर के आदेश को नहीं भला था और उमने जाना था कि उम काम मिला है। इस प्रवाह को उद्देश्य देना, इमे मानवीय गणों में अलकृत करना, इमकं पोगें में मानवीय पीड़ा भर देना । दमकी निरंकुश निम्द्देश्य गति को मानवीय करना और प्रेम में आन्दोलिन एक मंगीतमय प्रवाह बना देना, इम शन्य को पुनः मृष्टि में भर देना। महावीर का पूग जोर चरित्र के गठन पर था और चरित्र का निर्माण उन्होंने निपंधों में नहीं किया। उनका ब्रह्मचर्य और अहिंमा 33
SR No.010572
Book TitleVarddhaman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmal Kumar Jain
PublisherNirmalkumar Jain
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy