SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राक्कथन यह हमारे लिये अत्यन्त मौभाग्य का विषय है कि श्री निर्मल कुमार जैन भगवान महावीर के २५००वें निर्वाणोन्मव पर हमारे ही जिले में अतिरिक्त जिलाधीश (नियोजन) के रूप में रहे। ममय-ममय पर अनेकों आयोजनों में इनकी वार्ताएं सुनने को मिली जिनमे जनपद मुजफ्फरनगर के बौद्धिक जीवन के विकाम में अभूतपूर्व योगदान मिला। लोग उनके ओजपूर्ण और माग्गभिन विचारों को मनकर अक्मर अचम्भित होने है कि इतनी अल्प आयु में उन्होंने कहां से इतना ज्ञान और गहरी नज़र प्राप्त कर ली। विचारों की गहनता और अत्यन्त मौलिकना श्री जैन की विशेषता है परन्तु उनकी सबसे बड़ी विशेषता है किसी भी प्राचीन विचार को आधुनिक मंदर्भ में रखकर आज के जीवन से उसका मूल्यांकन करने की। विद्वता, महजता एवं आधुनिकता का ऐसा विचित्र ममन्वय बहुत मुश्किल में देखने को मिलता है। श्री जैन निःसंदेह देश के एक अन्यन्त उच्चकोटि के मौलिक विचारक और ओजपूर्ण वक्ता हैं जो हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं पर ममान अधिकार रखते हैं। यह प्रशानिक सेवा का भी सौभाग्य है कि एक ऐसा सर्वथा मौलिक विचारक और अत्यन्त सहृदय मानव शासकीय सेवा को अपना जीवन अर्पित किये हुए है। इस युवा कर्मयोगी ने हमें बताया कि किस तरह ऊंचे से ऊंचे
SR No.010572
Book TitleVarddhaman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmal Kumar Jain
PublisherNirmalkumar Jain
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy