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________________ बना दिये । निर्वाण उद्देश्य बना दिया। यह आत्मा मृत्यु मे न डरे । यह मर जाय । नभी नो परम मन्य एक और पगिकृत नल पर हममें प्रकट होगा। हर व्यक्ति में आत्मा है। पत्थर, लकडी आदि में भी यह आत्मा बमी है, उन्होंने कहा, और मनग्य में भी। परन्तु यह स्थल (gross ) आन्मा है। जब तक यह नहीं मग्गी तब नक मक्ष्म, गद्ध, बद्ध आत्मा का अनभव नहीं हो सकता। इसी कारण मनायो में उम आत्मा का जिक्र उन्होंने नहीं किया। उन्होंने माइक्लोजिकल मल्फ की वान कीजो उपलब्ध है। वही माइक्लोजिकल मेल्फ आज भी उपलब्ध है। आज भी वह चौगमी लाख योनियों में भटक रहा है। एक में अनेक वना जा रहा है। जब तक यह नहीं सकता, जब तक हम दम मनात आत्मा को व्यवहारिक गह नहीं बना मकने, योग, ध्यान आदि द्वाग इसके मनाप हग्ने की बात कहना ऐमी ही मखना है जैसे उम्मीद करे कि मो गया अनाथ बच्चा तो मा मे हुए विछोह को भूल जायगा। नही वह भूला रहेगा केवल जब तक मोरहा है। मनप्य की आत्मा आज भी अपने प्राचीन खेल में व्यस्त है और जीवन व्यर्थ हो रहा है। महावीर कहते है कि इस prodical son को मम्भालो। यह आत्मा जो भटक रही है इमकी यात्रा उत्टी कगओ ताकि यह अपना क्षय करे और मृन्य की ओर बढे जीवन की ओर नही। जब यह मृत्य को प्राप्त करेगी तो इसकी जगह शून्य नही आयेगा । इमकी जगह जो आयेगा उमका वर्णन करना गब्दों का व्यर्थ प्रयोग है। यही वात बद्ध के अनात्मवाद को भी प्रकट करनी है । आत्मा अमर नही है और वह निरन्तर वदल रही है । हम दो बार उमी नदी में प्रवेश नहीं करते। वे भी उमी माइक्लोजिकल मेल्फ का जिक्र कर रहे है जिसका जिक्र करते हुए उम युग के प्रमादी तत्वज्ञ गर्माने थे। उपनिषदों में कथित आत्मा का दिमागी मख लट-लट कर वे लोग आध्यात्मिक विलाम में पल रहे थे। अतः, उन्होने भी आध्यात्मिक आत्मा का हौव्वा खड़ा कर रखा था—जो न बदलती है, न घटती है, शाश्वत है, शुद्ध,
SR No.010572
Book TitleVarddhaman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmal Kumar Jain
PublisherNirmalkumar Jain
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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