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________________ करता है क्योंकि इममे उन्हे गौरव का अनभव होना है । मनाय होने में सम्मान महमम होता है। मगर वास्तव में यदि हम देखेनोमाधारण मनग्य का ज्ञान आत्मा के सम्बन्ध में फ्रायड और जग मे आगे नहीं बढ़ सका। जिम पग्म मत्य स्वरूप आत्मा का जिक्र वेदान्त तथा अन्य प्रबद्ध दर्शन करने है वह मर्वमाधारण के अनभव की चीज नहीं है । माधारण व्यक्ति अपनी आत्मा को जिम रूप में महमम करता है वह वही रूप है जो फ्रायड और जुग ने देया । टममें मदेह नही कि वह मिथ्या है। वह मत्य की विकृति है। परन्तु उममे आव मीच कर हम मन्य की प्राप्ति नही कर माने । दम मिथ्या स्वम्प का लय किये बिना उम दिव्य आत्मा का माक्षात्कार अमम्भव है। यही बात कहकर महावीर इन मभी दार्शनिकों में अलग हो जाने हैं। यह बात ध्यान में रखने योग्य है कि बद्ध ने आत्मा के सम्बन्ध में अनेक विवादों को मनकर एम झगडे में पड़ने मे इन्कार कर दिया था कि आत्मा अमर है या नही । उन्होंने आत्मवादियों के मन का ग्वण्टन निम्न वाक्य में किया था, "हम उमी नदी में दो बार प्रवेग नहीं कर सकने ।" मनाय के विचार, भावनाएं, इच्छाए प्रतिपल बदलती रहती है फिर यह कहना कि उमकी आत्मा अमर है हाम्याम्पद है। भगवान महावीर ने बद्ध का मार्ग भी नही अपनाया। उन्होंने इन अनंको उग्रवादो के बीच एक ममन्वय प्रस्तुत किया जो आज भी उनना ही उपयोगी है। वाग्नव में भगवान महावीर ने विज्ञान और मनोविज्ञान की उपेक्षा करकं विगी दर्शन का मार्ग प्रशम्न नहीं किया । उनका दगंन विज्ञान और मनोविज्ञान के मार्ग पर चलकर प्राग्न की गई आगे की एक मजिल है। इस बात को लेकर अनेकों ने जैन विचाग्याग का मजाक उड़ाया है कि जैन यह कहते है कि आत्मा जिम गरीर में होती है उमी गरीर का आकार ग्रहण कर लेती है हाथी के शरीर में हाथी जैमा और चीटी के शरीर में चीटी जमा। वेदान्नियों ने नर्क किया कि जो चीज घटनी बढ़नी है वह आत्मा हो ही नहीं सकती। यह कोई नई
SR No.010572
Book TitleVarddhaman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmal Kumar Jain
PublisherNirmalkumar Jain
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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