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________________ साधना की पूर्व भूमिका || उनकी ऐतिहासिकता को सिद्ध कर रहे हैं। भगवान अरिष्टनेमि के सम्बन्ध में भी काफी ऐतिहासिक प्रमाण मिल चुके हैं। शेष इक्कीस तीर्थंकरों की जीवनगाथा आज भी पौराणिक गाथा मानी जाती है। भगवान ऋषभदेव के विषय में ऋग्वेद एवं महाभारत तथा भागवत भी साक्षी देते हैं। किन्तु वे इतिहास की कालगणना से अतीत हैं । हम उन्हें प्रागैतिहासिक महापुरुष कह सकते हैं। प्रश्न यह है कि- इतिहास (वर्तमान इतिहास की खोज) जहां नहीं पहुंचा, क्या वह सत्य नहीं है ? और इतिहास ने जो कुछ पाया है, क्या वह सव सत्य है ? इस गुत्थी को खोलना यहां अप्रासंगिक होगा, किन्तु यह समझ लेना चाहिये कि हमें न इतिहास को आंख मूंदकर स्वीकार कर लेना चाहिये, और न पुराण का सर्वथा अपलाप करना है। वास्तव में इतिहास मात्र कुछ घटनाओं का संकलन होता है, और पुराण उन घटनाओं की आदर्शोन्मुखी व्यंजना है। पुराण घटना को सिर्फ घटना के रूप में नहीं, किन्तु उस घटना के माध्यम से हमारे कर्तव्य व आदर्श को भी प्रस्तुत करता है । इतिहास सिर्फ घटना और सत्य को पकड़ता है, किन्तु पुराण (मिथलोजी) उस घटना के मर्म को उघाड़ता है, सत्य में छिपे तथ्य तक पहुंचकर उसमें चरित्र को प्रकट करता है। इसलिये पुराण चरित्र होता है, चरित्र का निर्माता होता है। इतिहास चरित्र का निर्माण नहीं कर सकता। महापुरुषों को देखने की हमारी दृष्टि मात्र इतिहास से बंधी होगी तो हम उनके दिव्यरूप के दर्शन नहीं कर पायेंगे। हम महापुरुषों को मात्र ऐतिहासिक ज्ञान बढ़ाने के लिये नहीं पढ़ते, किन्तु उनसे जीवन का आदर्श प्राप्त करने के लिये, कर्तव्य की प्रेरणा पाने के लिये पढ़ते हैं और अकेला इतिहास यह लक्ष्य पूर्ण करने में असमर्थ है । इसलिये हमें इतिहास के साथ पुराण भी पढ़ने होंगे। सन्य को नंगी आंखों से नहीं, श्रद्धा की आंखों से देखना होगा। जैनधर्म मेधा और श्रद्धा, ज्ञान और प्रज्ञा दोनों का समन्वय चाहता है। इसलिये हमें अपने महापुरुषों का चरित्र ऐतिहासिक दृष्टि से भी पढ़ना है, और पौराणिक दृष्टि से भी। __ भगवान आदिनाथ, शान्तिनाथ, अरिष्टनेमि आदि तीर्थकरों का चरित्र भले ही पौराणिक हो, किन्तु उसमें जीवन की कला, साधना की दिव्य दृष्टि मिलती है। इतिहासकार की नजर में भगवान महावीर का जीवन भी कुल क्या है? अधिक-से-अधिक दो पृष्ठ का। किन्तु जिसके सामने भगवान महावीर के विशाल चरित्र ग्रंथ पड़े हैं, उसके लिये तो वह अगाधसमुद्र है, प्रेरणा और आदर्श का अक्षय स्रोत है।
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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