SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रसंगों में से उनके विराट् महावीरत्व का दर्शन हो सके, हर पक्ष पर उनके जिनल की गरिमामयी छवि दीव सके बोर उससे हमारा जीवन-प्रेरित अनुप्रीणित होकर उसी दिशा में गतिशील बन सके-इस मालेखन के पीछे यह स्पष्ट भावना रही है। इसीलिए कहीं-कहीं मागे-पीछे की घटनाओं को, जिनकी कि उपलब्धि समान है, जिनकी प्रतिध्वनि भी समान है, उन्हें एक ही प्रकरण में प्रथित करने का प्रयत्न किया है । मुख्यतः हमारा ध्येय न इतिहास लिखने का रहा है और न महावीर का समग्र जीवन चरित्र लिखने का। किन्तु महावीर के उस दिव्य रूप का दर्शन करने का रहा है जिसके कण-कण में समता, सहिष्णुता, वीतरागता, करुणा और लोकमंगल का आलोक जगमगा रहा है। हो सकता है, हमारी यह शंली इतिहास के अनुसंधाताओं को संतोष न के सके, तथा पुरातन-परम्परा प्रेमी मानस भी इससे पूर्ण संतुष्ट न हो, किन्तु फिर भी हमें विश्वास है कि प्रबुद्ध श्रद्धालु और पूर्वग्रहों से मुक्त विचारक इस पुस्तक के स्वाध्याय से प्रसन्नता और परिपूर्णता अनुभव करेगा। हमारे इस आलेखन का मुख्य माधार निम्न अन्य रहे हैं आचारांग सूत्र, अध्ययन ८ बावश्यक नियुक्ति त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र, पर्व १० महावीर कथा (गोपालदास जी० पटेल) श्रमण भगवान महावीर (मुनि कल्याणविजय जी) आगम और त्रिपिटिक : एक अनुशीलन (मुनि नगराजजी) ऐतिहासिक सामग्री प्रायः इन प्रन्यों के आधार से ली गई है, साथ हो विचार जागरण की दृष्टि से कविरल उपाध्याय श्री अमरमुनि जी महाराज का मौलिक चिन्तन समय-समय पर प्राप्त होता रहा है । तथ्यों को पकड़ने और उसकी अन्तर्रात्मा को उद्घाटन करने में उनकी सूक्ष्मदृष्टि सर्वत्र विश्रुत है, यदि उनकी विचार हुष्टि नहीं मिलती, तो शायद यह पुस्तक अपने भव्य रूप में निखर नहीं पाती। हमें प्रसन्नता है कि आचार्यश्री मानन्द ऋषि जी, श्री मरुधर केसरी पी एवं कविश्री जी जैसे बहुश्रुत मनीषी मुनिवरों के निदेशन से लाभ उठाकर इस पुस्तक को हम यथाशक्य सुन्दर और जनोपकारी रूप दे सके हैं। समय एवं साधनों की अल्पता के कारण जो कमियां रह गई है, उसकी ओर विज्ञपाठक ध्यान दिलायेंगे तो अगले संस्करण में परिष्कार किया जा सकेगा। विनीत:
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy