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________________ तृगय संग : शिशुक्र ६ मत कभी सुनाओ मुझको, राजा था या थी रानी। रानी फिर बोली- बेटा ! जो तुमको अच्छी लगती। वैसी ही कोई गाथा, मैं तुमको अभी सुनाती ॥ श्री ऋषभदेव-जोवन को. सुस्मृति रेखायें जो थीं। अब उनको निज शब्दों में, कर रहीं सुभग चित्रित थीं ।। जिनमें आकर्षित हो कर, शिशु मग्न हुए-से सुनते । यह देख कहानी कम भी. नृप शामिल हो रस लेते ॥ निज शिशु को कुछ ऐसी ही, गाथाओं में रुचि लखकर । सम्राट सोचते होगा, यह ऋषभ-पावसा नर दर ।। यों सुत-चिन्तन में नृपवर, सो जाते शान्त भाव से। मां-पुत्र नींद में भी प्रा, सो जाते हैं धीरे से ॥
SR No.010568
Book TitleTirthankar Bhagwan Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendra Prasad Jain
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1965
Total Pages219
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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