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________________ तृतीय सर्ग : शिशु वय ६७ सतरङ्गी इन्द्रधनुष-छवि, करती शोभा सुन्दरतर ॥ इन राजकुमार सन्निकट, हैं बहुत खिलौने रहते । पर वे तो उन्हें स्वयम् हो, निर्मित कर खेल खेलते ।। ज्यों कभी वस्त्र की दशियों, झण्डियां बनाया करते । फिर उन्हें पंक्ति में फहरा, हैं गान सुरीला गाते ॥ शिशु कभी पुष्प-पत्तों को, पा कर हैं हर्ष मनाते । फिर बड़े चाव से उनके, गुलदस्ते हार बनाते ॥ इस अल्प आयु में भी तो, उनको शुभ हस्तकला है । जिसमें भी राशि-राशि ज्यों। अनुपम सौन्दर्य भरा है। राजा-रानी यह लख सब, हैं फूले नहीं समाते । निज सुत-सा बालक पाकर, निज भाग्य सराहा करते ॥
SR No.010568
Book TitleTirthankar Bhagwan Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendra Prasad Jain
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1965
Total Pages219
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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