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________________ तीर्थङ्कर भगवान महावीर यों राज कुमार स्वयम् भी, घूमते हर्ष हैं करते । वे नगर हाट उद्यानों, को देख मोद मन भरते ॥ पर जब तक मां त्रिशला से, वे विलग रहा करते हैं। तब तक विह्वलता में क्षण, हैं उन्हें विताने पड़ते ॥ वे बाट जोहती रहती, अन्यत्र न मन रमता है। मां की कितनी कोमलतम, होती अभिन्न ममता है । वे यों एकाकीपन में, सुत-स्मृतियां सुभग संजोती। जिनमें निमग्न हो कर वे, अपना हैं समय विताती॥ दासी को कभी बुला कर, उससे हैं बातें करतीं । इन बातों में भी तो वे, सुत चर्चा हो हैं रखतीं। वे कमी द्वार पर प्राहट, सुन वासी तुरत भेजती ।
SR No.010568
Book TitleTirthankar Bhagwan Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendra Prasad Jain
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1965
Total Pages219
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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