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________________ तीर्थङ्कर भगवान महावीर अन्तःपुर में त्रिशला देवी, सुख-जीवन यापन करतीं । उनको परिचर्या में तत्पर, दासी हैं अनेक रहतीं ॥ धीरे-धीरे बम-क्रम करके, समय सरकता जाता है । जो भी क्षण जाता है लेकिन, सौख्य-सृष्टि कर जाता है। यों सम्राज्ञी त्रिशला माता, के दिन सुख से बीत रहे। प्रसव काल प्राता जाता है, किन्तु न कोई कष्ट सहे ॥ ये लक्षण तो बतलाते हैं, __वत्स असाधारण कोई । मां त्रिशला के होने बाला, क्या इसमें शङ्का कोई ॥ त्रिशला मां की टहल बजाती, हैं छप्पन कुमारियां सब । भांति-भांति की चर्चा करके, वे प्रसन्न करती हैं सब ॥ इस चर्चा के सुन्दर क्रम में, प्रखर बुद्धि सम्राज्ञी की।
SR No.010568
Book TitleTirthankar Bhagwan Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendra Prasad Jain
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1965
Total Pages219
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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