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________________ शुभ सन्देश और सम्मतियां दय ने पद्य रचना करने में अथक परिश्रम किया है। माशा है कि जन-साधारण भी इससे लाभान्वित होंगे।" साप्ताहिक 'ज्वाला' ७ मई १६५६, जयपुर ""इन पाठ सर्गों में (भ० महावीर के) प्रवतरणसे निर्वाण तक का समस्त वृत्त कवि ने शुद्ध हिन्दी में छन्दोबद्ध किया है। सिद्धपुरुष महावीर जैसे महान व्यक्ति को जीवन-कथा वर्णनाके कारण प्रस्तुत काव्य महाकाव्य है।" -श्री अंगरिस (विस्तृत समीक्षा का एक अंश) सप्ताहिक 'जैन मित्र' ता० ३०-४-५६, सूरत....... इस प्रकार के एक सुन्दर सचित्र काव्य में भ• महावीर का जीवन परिचय यह प्रथम ही प्रकट हुप्रा है । रचना सानी, सरल व भाव वाही व स्वाध्याय करने योग्य है।" -श्रो मूलचन्द किशनदास कापडिया ('प्राप्ति स्वीकार' स्तम्भ में प्रकाशित समालोचना का एक अंश) साप्ताहिक 'जन-सन्देश' (१८ जून १६५६) मथुरा___ "कवि ने श्वेताम्बर प्रागमों में वर्णित महावोर के जीवन की कतिपय घटनामों को भी जो विशेष रूप से उनके तपस्याकाल से सम्बद्ध हैं, अपनाया है । फलतः महावीर भ० की तपस्या का रोमाञ्चकारी वर्णन प्रभावक बन पड़ा है। कविता साधारणतया अच्छो है । रोचक है, पढ़ने से आनन्द प्राता है। प्रारम्भिक भाग तो बहुत सुन्दर है ‘मंगल प्रभात को मधुर मांगजिक बेला। पल्लवदल से सुरभित मलयानिल खेला ॥ छाई प्राची में अलसाई प्रणाई । हो गई निशा की अब तो पूर्ण विदाई ।' पुस्तक सचित्र है। प्रारम्भ में भगवान महावोर का रंगोन चित्र है। उसके पश्चात भी प्रकरणोपयोगी अनेक चित्र हैं।
SR No.010568
Book TitleTirthankar Bhagwan Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendra Prasad Jain
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1965
Total Pages219
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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