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________________ १२२ तीर्थकर भगवान महावीर 'धन्य माँ भी ! धन्य' सहसा, विनत सन्मति सहज बोले । धन्य आर्यावर्श महिला, नपति मुख से शब्द निकले ॥ माव गदगद थे समी के, किन्तु नप भर श्वांस बोले । 'बस्स ! मम स्वीकृति, तुम्हारेहित सफलता द्वार खोले ॥ राज्ञि नृप किस हेतु पाए, और अब क्या हो गया है। है सु-बलिहारी समय की, यह विचक्षण क्षण नया है। ___ चिर ऋणो हूं प्रापका में, विनययुत थे वीर बोले । कहा तदनन्तर उन्होंने, परम श्रद्धा भक्ति-घोले ॥ 'धन्य पिता जी धन्य जननि मम धन्य, धन्य मावर्श ललाम । धन्य भाग्य मम मिले माप सम, मात-पिता अनुपम अभिराम ' '
SR No.010568
Book TitleTirthankar Bhagwan Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendra Prasad Jain
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1965
Total Pages219
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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