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________________ १.८ तीर्थङ्कर भगवान महावीर किन्तु नप सिद्धार्थ त्रिशलाने सुना विवरण सभी. का। रूप, रंग, लावण्य, गुण की, दृष्टि से विस्तार उनका ॥ तो कलिङ्गाधिप-सुता पर, शुभ यशोदा नाम जिसका । मुग्ध हो आया हृदय प्रति, सुत-बधू-हित-हेतु उनका ॥ माव त्रिशला और नप के, जब कलिङ्गाधीश ने भी । ज्ञात कर पाये तभी वे, शीघ्र आए ले शिविर भी॥ नाम था जितशत्रु इनका, निज सुता को साथ लाए । देख जिसका रूप गुण, सिद्धार्थ-त्रिसला मुस्कराए ॥ सुत-बधू के सम्वरण-हित, वे सभी विधि से लुमाए । प्रश्न पर यह बात कैसे, कौन सन्मति को सुनाए ? नपति बोले, 'तुम्ही त्रिसला ! बत्त सन्मति को बतायो ।
SR No.010568
Book TitleTirthankar Bhagwan Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendra Prasad Jain
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1965
Total Pages219
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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