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________________ तीर्थङ्कर भगवान महावीर मां त्रिशला बोलों नृपवर से, क्या बात नहीं सन्मति प्राया। वह जाने कहां किस तरह है ?" जो त्रिशलाका अति भर आया। नप बोले 'तुम चिन्ता न करो, ___ मैं अभी ज्ञात सब करता हूं। मैं भृत्य मेजता और स्वयम्, उस बाग ओर हो जाता हूं। त्रिशला बोलीं-'शीघ्रता करें, • कोई न घटित दुर्घटना हो । यदि राज-वैध भी साथ लिए, जावें तो प्रति ही अच्छा हो। जी चाह रहा यों मेरा भी, मैं भी श्रीमन के साथ चलूं । निज वर्द्धमान को देख सकें, . कैसे मन मारे यहाँ रहूँ ? नप बोले-'तुमको साथ लिए, चलने में तनिक देर होगी । कारण रथ की तैय्यारी सब, तव गमन-हेतु करनी होगी ॥ मैं जाता, नहीं बिलम्ब कह', । कह नृपति गए झट ही बाहर ।
SR No.010568
Book TitleTirthankar Bhagwan Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendra Prasad Jain
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1965
Total Pages219
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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