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________________ शास्त्रजीको नमस्कार करनेके कवित्त । वीर हिमाचलते निकसी, गुरु गौतमके मुखकुंड ढरी है। मोहमहाचल भेद चली, जगकी जडतातप दूर, करी है। ज्ञानपयोनिधिमाहिरली, बहुभंगतरंगनिसों उछरी है । ता शुचि शारद गंगनदी प्रति, मैं अंजुलिकर शीश धरी है ॥१॥ या जगमंदिरमें अनिवार अज्ञान अँधेर छयो अति भारी । श्रीजिनकी धुनि दीपशिखासम. जो नहिं होत प्रकाशन-हारी॥ तो किसभांति पदारथपांति, कहां लहते, रहते अविचारी । या विधि संत कहें धनि हैं, धनि हैं जिनवैन बडे उपकारी॥२॥ निका पान प्रतिदिन शास्त्रस्वाध्यायके प्रारम्भमे इस श्रुतभक्तिको पढना चाहिये । ॐकारं बिंदुसंयुक्तं नित्यं ध्यायति योगिनः । कामदं मोक्षदं चैव ॐकाराय नमो नमः ॥१॥ आर्या अविरलशब्दघनौघप्रक्षालितसकलभूतलमलकलंका।मुनिभिरुपासिततीर्था सरस्वती हरतु नोदरितं॥ अज्ञानतिमिरांधानां ज्ञानाञ्जनशलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥ परमगुरवे नमः, परंपराचार्यगुरवे नमः । सकलकलुषविध्वंसकं, श्रेयसां परिवर्धकं, धर्मसंबंधकं | भव्यजीवमनःप्रतिबोधकारकमिदं शास्त्रं ॐ श्री........नामधेयं, अस्य मूलग्रंथकर्तारः श्रीसर्वज्ञदेवास्तदुत्तरग्रंथकर्तारः श्रीगणधरदेवास्तेषां वचोऽनुसारमासाद्य xश्री.......... आचार्य विरचितं ॥ मंगलं भगवान्वीरो मंगलं गौतमो गणी । मंगलं कुंदकुंदाद्यो जैनधर्मोऽस्तु मंगलं ॥ १ ॥ टीप: *प्रथनाम xग्रंथकताका नाम
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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