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________________ वचनिका पान ४८ मुहूर्त है । उत्कृष्ट पृथक्त्व कोडिपूर्व है । च्यार उपशमश्रेणीवालेनिका नानाजीवकी अपेक्षा गुणस्थानवत् है एकजीवकी अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट पृथक्त्वकोडिपूर्व है । अवशेपनिका गुणस्थानवत् अंतर है। देवगतिविपें देवनिकै मिथ्याद्दष्टि असंयतसम्यग्दृष्टिका नानाजीवकी अपेक्षा अंतर नाहीं है । एकजीवकी अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । सर्वार्थ | उत्कृष्ट एकतीस सागर देशोन है। सासादनसम्यग्दृष्टि सम्यग्मिथ्यादृष्टिका नानाजीवकी अपेक्षा गुणस्थानवत् है। एकजीवका अपेक्षा जघन्य पल्यका असंख्यातवा भाग अर अंतर्मुहूर्त है, उत्कृष्ट इकतीस सागर है, सो देशोन है ॥ टीका का इंद्रियनिके अनुवादकार एकेंद्रियनिका नानाजीवकी अपेक्षा अंतर नांही है । एकजीवकी अपेक्षा जघन्य क्षुद्रभव है। RI उत्कृष्ट दोय हजार सागर पृथक्त्वकोडिपूर्व अधिक है। विकलत्रयका नानाजीवकी अपेक्षा अंतर नांही है । एकजीवकी अपेक्षा जघन्य क्षुद्रभव है । उत्कृष्ट अनंतकाल है। सो असंख्यातपुद्गलपरिवर्तन है। ऐसे इंद्रियप्रति अंतर कह्या है । गुणस्थानकी अपेक्षा एक मिथ्यात्वही है तातें अंतर नांही है। पंचेंद्रियवि मिथ्यादृष्टिका अंतर गुणस्थानवत् है। सासादनसम्यग्दृष्टिका अर सम्यग्मिथ्याइष्टिका नानाजीवकी अपेक्षा गुणस्थानवत् है। एकजीवकी अपेक्षा जघन्य पल्यका असंख्यातवा भाग अर अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट हजार सागर पृथक्त्वकोडिपूर्व अधिक है । असंयतसम्यग्दृष्टि आदि अप्रमत्तपर्यंतनिका नानाजीवकी अपेक्षा अंतर नांही है। एकजीवकी अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्ट हजार सागर पृथक्त्वकोडिपूर्व अधिक है। च्यारि उपशमश्रेणीवालेनिका नानाजीवकी अपेक्षा गुणस्थानवत् अंतर है । एकजीवकी अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट हजार सागर पृथक्त्वकोडिपूर्व अधिक है । अवशेपनिका गुणस्थानवत् अंतर है ॥ ___ कायके अनुवादकरि पृथिवी अप्, तेज, वायुकायिकनिकै नानाजीवकी अपेक्षा अंतर नाही है। एकजीवकी अपेक्षा जघन्य क्षुद्रभव उत्कृष्ट अनंतकाल है सो असंख्यातपुद्गलपरिवर्तन है । वनस्पतिकायिकनिकै नानाजीवकी अपेक्षा अंतर नांही है । एकजीवकी अपेक्षा जघन्य क्षुद्रभव उत्कृष्ट असंख्यातलोक है। इहां असंख्यातलोककै प्रदेश हैं ते ते कालके समय ग्रहण है । ऐसें कायकी अपेक्षा अंतर कया है। गुणस्थानकी अपेक्षा अंतर नांही है । त्रसकायिकवि मिथ्याष्टिका गुणस्थानवत् अंतर है। सासादनसम्यग्दृष्टि अर सम्यग्मिथ्याष्टिका नानाजीवकी अपेक्षा गुणस्थानवत् है। एकजीव पल्यका असंख्यातवा भाग है । अर अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट दोय हजार सागर पृथक्त्वकोडिपूर्व अधिक है । असंयतसम्यग्दृष्टि आदि अप्रमत्तपर्यंतनिका नानाजीवकी अपेक्षा अंतर नांही है। एकजीवकी अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है, उत्कृष्ट दोय हजार सागर पृथक्त्वकोडिपूर्व अधिक है । च्यारि उपशमश्रेणीवालेनिका नानाजीवकी अपेक्षा गुणस्थानवत् अंतर है । | एकजीवकी अपक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट दोय हजार सागर पृथक्त्वकोडिपूर्व अधिक है। अवशेपनिका पंचेद्रियवत् अंतर है।
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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