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________________ सर्वार्थ . नयका विषय एकधर्म है ताते तिस धर्मकी भेदवृत्तिकरि तथा अन्यनयका विपय जो अन्यधर्म ताके भेदके उपचारकार नयसप्तभंगी होय है। इहां कोई पूछे, अनेकांतही है ऐसे भी एकांत आवै है तव अनेकांतही कैसे रह्या ? ताका || उत्तर- यहु सत्य है, जो अनेकांत है सो भी अनेकांतही है। जाते प्रमाणवचनकार तो अनेकांतही है। नयवचनकारी एकांतही है। ऐसे एकांतही सम्यक् है जाते प्रमाणकी सापेक्षा भई । बहुरि जहां निरपेक्ष एकांत है सो मिथ्या है। व चसिन्दि , इहां कोई कहै, अनेकांत तौ छलमात्र है। पलेकी युक्ति वाधनेकू अवलंबन है। तहा कहिये छलका लक्षण तो अर्थका निका विकल्प उपजाय पैलेका वचन खंडन करना है। सो अनेकांत ऐसें नाही। जाते दोय धर्मकी प्रधान गौणकी अपेक्षाकार पान वस्तु जैसे है तैसें कहै है, यामै छल कहां ? बहुरि कोई कहै, दोय पक्ष साधना तौ संशयका कारण है। ताकू कहिये, जो, संशयका स्वरूप तौ दोऊ पक्षका निश्चय न होय तहां है। अनेकांतविर्षे तो दोऊ पक्षके विपय प्रत्यक्ष निश्चित हैं। तातें संगयके कारण नाही। बहुरि विरोधभी नाही। जातें नयकार ग्रहे जे विरुद्धधर्म तिनिका मुख्यगौणकयनके भेदतें सर्वथा भेद नाही है। जैसे एकही पुरुपवि पितापणा पुत्रपणां इत्यादिक विरुद्वधर्म हैं, तिनिके कहनेकी मुख्यगौणविवक्षाकार विरोध नाही तैसे इहां भी जाननां ॥ ___ आगे प्रमाणनयनिकरि जाणे जे जीवादिक पदार्थ, तिनिके अधिगमका अन्य उपाय दिखावनेकै आर्थि सूत्र कहे हैं ॥ निर्देशखामित्वसाधनाधिकरणस्थितिविधानतः ॥ ७॥ याका अर्थ-निर्देश, स्वामित्व, साधन, अधिकरण, स्थिति, विधान इनि छह अनुयोगकरि भी सम्यग्दर्शन आदि तथा जीव आदि पदार्थनिका अधिगम होय है ॥ तहां निर्देश तो स्वरूपका कहनां । स्वामित्व कहिये अधिपतिपनां साधन कहिये उत्पत्तिका कारण । अधिकरण कहिये अधिष्ठान आधार । स्थिति कहिये कालका प्रमाण । विधान कहिये प्रकार ॥ ऐसे इनिका द्वंद्वसमासकरि बहुवचनम्प करण अर्थ प्रमाणनयकी ज्यों जाननां । संक्षेपते तो अधिगमका उपाय प्रमाणनय कहे । वहार मध्यमस्थानते शिप्यके आशयके वशकरि इनि निर्देश आदि अनुयोगनिकार कहना । तहा कहा वस्तु है ? कौनकै है ? काहेकार है ? कौनवि है, कितेककाल है ? के प्रकार है ? ऐसे छह प्रश्न होते, इनिका उत्तर कहनां ते निर्देशादिक है। उदाहरण- सम्यग्दर्शन कहा है ? ऐसे प्रश्न होते तत्त्वार्थश्रद्धान है सो सम्यग्दर्शन है । अथवा याके नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव कहने सो निर्देश है। बहुरि सम्यग्दर्शन कौनकै है ? ऐसा प्रश्न होतें सामान्यर कार तौ जीवकै है ऐसा कहना ॥
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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