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________________ सर्वार्थ सिदि आगें तत्वार्थसूत्रका दश अध्यायका जोडरूप संक्षेप अर्थ लिखिये हैं ॥ तहां प्रथम अध्यायमें प्रथमसूत्रमें तौ सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र तीनकी एकता है। सो मोक्षमार्ग है ऐसा कह्यो । आगे दूसरे सूत्रमें सम्यग्दर्शनका लक्षण कह्या। तीसरे सूत्रमें सम्यग्दर्शनकी उत्पत्ति दोयप्रकार कही। चौथे सूत्रमें सम्मग्दर्शनके टोका विषयभूत सात तत्व कहे । बहुरि इनके स्थापनकू व्यवहारका व्यभिचार मेंटनेकू नाम आदि च्यारि निक्षेप कहे । आगे म. 101 प्रमाणनयनिकार सम्यग्दर्शनादिक तथा तिनका विषय जीवादिक तत्वनिका अधिगम होय है। बहुरि निर्देशादि छह अर सत् आदि आठ ऐसे चौदह अनुयोगनिकार अधिगम होय है, ऐसे कया। बहुरि मति आदि पांच ज्ञानके भेद कहि अर तिनके दोय प्रकार प्रमाण कहे। परोक्ष दोय प्रत्यक्ष तीनि । बहुरि मतिज्ञानके उत्पत्तिके कारण कहि । ताके अवग्रहादिक भेद च्यारि सूत्रमें कहे। ते तीनसै छत्तीस होय हैं। बहरि श्रुतज्ञानका स्वरूप भेद कहे। बहुरि अवधिज्ञानका स्वरूप दोय सूत्र में कह्या बहुरि मनःपर्ययका स्वरूप कह्या । ताके दोय भेदनिका विशेप कहि अवधिमनःपर्ययमें विशेप कह्या । आगें पांचू ज्ञानका विषय तीनि सूत्रमें कहि । अर एकजीवके एककाल च्यारिताई ज्ञान होय है ऐसैं कह्या । बहुरि मति श्रुत अवधि विपर्ययस्वरूप भी होय है, ताका कारण कह्या। बहुरि नैगम आदि सात नयकी संज्ञा कहि । प्रथम अध्याय पूर्ण किया॥१॥ । आगें दूसरे अध्यायमें जीवतत्वका निरूपण है। तहां प्रथमही जीवके औपशमिक आदि पांच भाव हैं । तिनके | तरेपन भेद सात सूत्रमें कहे । आगे जीवका प्रसिद्ध धर्म देखि उपयोग· लक्षण ब्रह्या । ताके आठ भेद कहे। आगे जीवके भेद कहे। तहां संसारी अर मुक्त -अर संसारीनिमें संज्ञी असंज्ञी त्रस स्थावर त्रसके भद द्वीन्द्रियादिक पंचइन्द्रियताई कहे । बहार पांच इन्द्रियके द्रव्यइन्द्रिय भावइन्द्रियकरि भेद तिनके नाम विषय कहे । बहुरि एकहन्द्रिय आदि जीवनिके इन्द्रिय पाईये तिनका निरूपण अर संज्ञी जीव कौन ऐसें कह्या । वहुरि परभवकू जीव गमन करै ताके गमनका स्वरूप कह्या । आगें जन्मके भेद योनिके भेद अर गर्भज कैसे उपजै देव नारकी सन्मूर्छन कैसे उपजै ताका निर्णय है । आगें पांच शरीरानिके नाम कहि । अर तिनके सूक्ष्मस्थूलका स्वरूप कहि । अरु ये जिनकै जैसे उपजै तिनका निरूपण किया। आगें वेद जिनकै जैसा होय ताकू कहिकार जिनके उदय उदीरणाकार मरण होय तिनका नियम कहि अध्याय पूर्ण किया ॥२॥ आगें तीसरे अध्यायमें जीवका रहनेका लोक है तामें अधोलोक मध्यलोकका निरूपण है। तामें अधोलोकमें सात पृथ्वीनिके नाम कहे तिनविर्षे नारकी जीव उपजै है । तिनके विलनिका परिमाण कह्या । बहुरि जीवनिका अशुभ
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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