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________________ सर्वार्थ-01 वच भ.३ सुपमसुपमा । सुपमा । सुषमदुःपमा । दुःषमसुपमा । दुःषमा । अतिदुःषमा ऐसें । बहुरि उत्सर्पिणी भी छह प्रकार है। सो पूर्वोक्तः उलटा गिणनां । तहां अतिदुःपमा । दुःषमा । दुःषमसुपमा । सुषमदुःपमा । सुपमा । सुपमसुषमा ऐसे ।। इनिका कालका प्रमाण दश दश कोडाकोडि सागर जाननां । इनि दोऊनिकों भेले किये कल्पकाल कहिये । तहां सुपमसुपमा च्यारि कोडाकोडि सागरका । तिस कालकी आदिवि मनुष्य उत्तरकुरु भोगभूमिके मनुष्यनितुल्य होय है। तहांतें अनुक्रमतें सिदि घटतें घटते सुपमाकाल तीन कोडाकोडि सागरका होय है । तिसकी आदिविर्षे मनुष्य हरिक्षेत्रके मनुष्यनिसारिखे होय निका टीका है । तहांत अनुक्रमते घठतें घटते सुपमदुःपमाकाल दोय कोडाकोडि सागरका होय है। तिसकी आदिवि मनुष्य हैमवत- पान क्षेत्रके मनुष्यनिकै समान होय है। तहांतें अनुक्रमतें घटतें घटते दुःषमसुपमाकाल बियालीस हजार बरस घाटि एक I १६२ कोडाकोडि सागरका होय है । तिसकी आदिवि मनुष्य विदेहक्षेत्रके मनुष्यनिकै तुल्य होय हैं। तहांते अनुक्रमतें घटतेंघटते दुःपमाकाल इकईस हजार वर्षका होय है । तहांतें अनुक्रमतें घटते घटते अतिदुःपमाकाल इकईस हजार वर्पका होय है । ऐसेंही उत्सर्पिणी भी उलटा अनुक्रमरूप जाननां ॥ ___ आगें पूछे है कि, अन्यभूमिनिकी कहा अवस्था है ? ऐसे पूछे सूत्र कहै है ॥ ताभ्यामपरा भूमयोऽवस्थिताः ॥२८॥ याका अर्थ-तिनि भरत ऐरावत क्षेत्र सिवाय रहे जे क्षेत्र ते । अवस्थिताः । कहिये जैसे हैं तैसेही रहै है ॥ तहां उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल नांही पलटै है ॥ ___ आगें पूछे है, तहांके मनुष्यनिकी आयु समानही है कि कछु विशेप है ? ऐसे पूछ सूत्र कहैं हैं ॥ एकद्वित्रिपल्योपमस्थितयो हैमवतकहारिवर्षकदैवकुरवकाः ॥ २९ ॥ याका अर्थ- हैमवतक कहिये हैमवतक्षेत्रके मनुण्य तिनिकी आयु एक पल्यकी है। इसकू जघन्यभोगभूमिका क्षेत्र कहिये । बहुरि हरिवर्पके मनुष्यनिकी आयु दोय पल्यकी है। इसकं मध्यमभोगभूमिका क्षेत्र कहिये । बहुरि देव15 कुरुभोगभूमिका मनुष्यनिकी आयु तीन पल्यकी है। इसकं उत्तमभोगभूमि कहिये। तहां पांच मेरुसंबंधी पांच हैमवत।। क्षेत्रनिवि4 सुपमदुःपमा सदा अवस्थित है। तहांके मनुष्यनिका आयु एक पल्यका अरु काय दोय हजार धनुष्यनिका है । बहुरि एकदिनके अंतरतें आहार करै हैं । बहुरि नीलकमलसारिखा शरीरका वर्ण है । बहुरि पांच हरिक्षेत्रनिविर्षे
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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