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________________ जातिके देव तिनिकरि सहित वतॆ हैं । तिस कमलके परिवारकमल हैं। तिनिकै ऊपरि महल हैं । तिनिवि सामानिक देव वसै हैं । तथा पारिषद देव वसै हैं ॥ आर्गे जिनि नदीनिकरि ते क्षेत्र भेदे ते नदी कहिये हैं सर्वार्थ सिद्धि टीका आ.३ निका पान १५९ ॥ गङ्गासिन्धूरोहिद्रोहितास्याहरिध्दरिकान्तासीतासीतोदानारीनरकान्तासुवर्णरूप्य ___ कूलारक्तारक्तोदाः सरितस्तन्मध्यगाः ॥ २०॥ याका अर्थ- तिनि क्षेत्रनिके मध्य गमन करै ऐसी चौदह नदी हैं । तिनिके नाम गंगा सिंधू रोहित रोहितास्या | हरित् हरिकांता सीता सीतोदा नारी नरकांता सुवर्णकूला रूप्यकूला रक्ता रक्तोदा ऐसैं। सरित् कहनेतें तौ वापी नाही | है । बहुरि तन्मध्य कहनेतें इत उत नांही गई हैं ॥ आर्गे, सर्वनदीनिका एक जायगा प्रसंगके निषेधकू दिशाका विशेषकी प्रतिपत्तिकै आर्थि सूत्र कहै हैं-- ॥ द्वयोर्द्वयोः पूर्वाः पूर्वगाः ॥२१॥ याका अर्थ- दोय दोय नदी एक एक क्षेत्रविर्षे हैं । ऐसें वाक्यविशेष जोडनेते सर्वका एक जायगा प्रसंगका निषेध है। बहुरि पूर्वाः पूर्वगाः ऐसे वचन" दिशाका विशेषकी प्राप्ति है। तहां जे पाठमैं दोय दोयमैं पहली कही जो नदी, ते पूर्वदिशाके समुद्र• गई हैं । इहां पहली कही सात नदीत पूर्वदिशाकू गई होयगी ऐसा नाही है । जातें दोय दोयमैसूं पहली पहली लेणी ऐसें जाननां ॥ ____ आगें, पहली पहली तौ पूर्वदिशाकू गई बहुरि अन्य किस दिशाकू गई ? तिनिकी दिशाका विभागकी प्रतिपत्तिकै अर्थि सूत्र कहै हैं ॥शेषास्त्वपरगाः ॥ २२ ॥ याका अर्थ- दोय दोयमैं जो अवशेष रही ते नदी पश्चिमके समुद्रकू गमन करै हैं, ऐसी प्रतीति करनी ॥ तहां Mal पमहदके पूर्वद्वारतें निकसी जो गंगानदी सो तौ भरतक्षेत्रमैं होय पूर्वसमुद्रकुं गई । बहुरि पश्चिमद्वारतें निकसी सिंधू सो
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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