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________________ टीका निक काल च्यारि समय हैं ताविपें तीन मोडा ले है। चौथे समय निष्कुटक्षेत्रविर्षे पहुंचे है । जैसे गऊ मूतता चल्या जाय । तब मूतविर्षे केई मोडा होय हैं सो इहां उपमामात्र है । तिनकू बहुही कहिये तातें तीनही मोडा हैं । यह भी २ संसारीकैही होय है। । आगै पूछ है, विग्रहवती गतिका तौ कालका नियम कह्या बहुरि अविग्रहवतीका कालनियम केता है ? ऐसे 11. सिद्धि || पूछ सूत्र कहै हैं॥ एकसमयाऽविग्रहा ॥ २९ ॥ १३४ याका अर्थ-- अविग्रहगति है सो एक है समय काल जाका ऐसी है ॥ एक है समय जाकै ताकू एकसमया । कहिये । नाही विद्यमान है विग्रह जाकै ताकू अविग्रहा कहिये । ऐसे गतिसहित जे जीवपुद्गल तिनिकी गति अव्याघात कहिये रुकनां मोडा लेना तिनिविना एकसमयकालमात्र है। याही ऋजुगति कहिये है सो क्षेत्रकी अपेक्षा लोकके अंतताई है। अधोलोकतें लगाय ऊर्ध्वलोकपर्यंत लोकका अंत चौदह राजू है । सो जीव पुद्गल सीधा गमन करै तौ एक समयमैं चौदह राजू पहुंचे ऐसा भावार्थ जानना ॥ आगें, अनादिकर्मबंधका संतानवि मिथ्यादर्शन आदि कारणके वशतें कर्मनिकू ग्रहण करता जो यह जीव सो विग्रहगतिवि भी आहारकहीका प्रसंग आवै है । तातें तिसका नियमकै आर्थि सूत्र कहै हैं ॥ एकं द्वौ त्रीन् वाऽनाहारकः ॥ ३० ॥ याका अर्थ- विग्रहगतिविपें यहु जीव एकसमय अथवा दोय समय तथा तीन समय अनाहारक है, नोकर्मवर्ग-1 Aणाका आहार नाही है ॥ इहां समयका तो अधिकार” संबंध कर लेना । बहुरि सूत्रमै वा शब्द विकल्पकै आर्थि है। 18 जैसी इच्छा होय तहांही रह जानां सो विकल्प है। जैसे पाणिमुक्तागति करै सो एकसमयही अनाहारक रहै । लांगलिकागति करै सो दोय समयही अनाहारक रहै । गोमूत्रिकागति करै सो तीन समय अनाहारक रहै आगै चौथा समय आहारकहीका है । जाते ऐसा क्षेत्र नांही जो फेरि मोडा खाय । तहां औदारिक वैक्रियिक आहारक ए तीन शरीर तथा आहार आदि छह पर्याप्तिकै योग्य पुद्गलवर्गणाका ग्रहण सो आहार कहिये । जातें यहु आहार नाही सो अना० हारक है । बहुरि कर्मवर्गणाका ग्रहण जेतें कार्मण शरीर है तेतें निरंतर है । तहां उपजनेके क्षेत्रप्रति जो ऋजुगतिही एक समय । अधोलोकतै लगाया एकसमयकालमात्र है। यह स गतिसहित जे जीवएस आज, अनादिह राज पहुंचे ऐसा भोकापर्यंत लोकका अंत याहीवं ऋजुगति का जीवपुरल तिनिकी नातं एकसमया र दह राज है । सो सो क्षेत्रकी अपेक्षाअव्याघात ।
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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