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________________ . वच सिद्धि तौ विशेषण भया, तातै गौण है । बहुरि द्रव्य विशेष्य भया तातें मुख्य है । ऐसें अशुद्धद्रव्यनैगमनय भया । बहुरि प्राणीके सुखसंवेदन है सो क्षणध्वंसी है ऐसे क्षणध्वंसी ऐसा तो सत्ताका अर्थपर्याय है सो विशेपण है । बहुरि सुख । है सो संवेदनका अर्थपर्याय है सो विशेप्य भया तातें मुख्य है । तातें यहु अर्थपर्यायनैगम भया ॥ बहुरि पुरुपवि चैतन्य है सो सत् है इहां सत् नामा व्यंजनपर्याय है सो विशेषण है । बहुरि चैतन्यनामा व्यंजनपर्याय है सो विशेष्य सर्वार्थ है तातें मुख्य है । यह व्यंजनपर्यायनैगम है । बहुरि धर्मात्मावि सुखजीवीपणां है । इहां सुख तौ अर्थपर्याय है सो टी का विशेषण है । बहुरि जीवित व्यंजनपर्याय है सो विशेप्य है, तातें मुख्य है । यहु अर्थव्यंजनपर्यायनैगम है। बहुरि पान अश संसारविर्षे सत् विद्यमान सुख है सो क्षणमात्र है । इहां सत् शुद्धद्रव्य है सो विशेषण है । सुख है सो अर्थपर्याय है, तातें मुख्य है । यह शुद्धद्रव्य अर्थपर्यायनैगम भया ॥ बहुरि विषयी जीव है सो एक क्षण सुखी है इहां जीव है सो अशुद्धद्रव्य है सो विशेष्य है । सुख है सो अर्थपर्याय है सो विशेषण है ताते गौण है। यहु अशुद्धद्रव्य अर्थ बहुरि चित्सामान्य है सो सत् है इहां सत् ऐसा शुद्धद्रव्य है सो तौ विशेपण है ताते गौण है। चित् है सो व्यंजनपर्याय है सो विशेप्य है तातें मुख्य है । ताका यहु शुद्धद्रव्यव्यंजनपर्यायनैगम भया ॥ बहुरि जीव | है सो गुणी है इहां जीव है सो अशुद्धद्रव्य है, सो विशेष्य है सो मुख्य है । बहुरि गुण है सो व्यंजनपर्याय है, | सो विशेषण है ताते गौण है । यह अशुद्धद्रव्यव्यंजनपर्यायनैगम भया । ऐसें नैगमनयके नव भेद है ते संग्रहादि छह मिले पंधरा होय है ॥ आगे संग्रहनयका लक्षण कहै हैं । अपनी एक जातिके वस्तुनिषू अविरोध करिये एकप्रकारपणाकू प्राप्तिकरि जिनमें | भेद पाईये ऐसै विशेपनिळू अविशेपकार समस्तकू ग्रहण करै ताकू संग्रहनय कहिये । इहां उदाहरण । जैसें सत् ऐसा वचनकरि तथा ज्ञानकरि अन्वयरूप जो चिन्ह ताकरि अनुमानरूप किया जो सत्ता ताके आधारभूत जे सर्व वस्तु तिनिका अविशेषकरि संग्रह करै जो सर्वही सत्तारूप है ऐसै संग्रहनय होय है । तथा द्रव्य ऐसा कहते जो गुणपर्यायनिकरि सहित जीव अजीवादिक भेद तथा तिनिके भेद तिनिका सर्वनिका संग्रह होय है । तथा घट ऐसा कहते घटका नाम तथा ज्ञानके अन्वयरूप चिन्हकरि अनुमानरूप किये जे समरत घट तिनिका संग्रह होय है। ऐसे अन्य भी एकजातिके वस्तुनिळू भेला एककरि कहै तहां संग्रह जानना । तहां सत् कहनेत सर्ववस्तूका संग्रह भया । सो यहु तौ शुद्धद्रव्य कहिये । ताका सर्वथा एकांत सो संग्रहाभास कुनय है । सो सांख्य तौ प्रधानकू ऐसा कहै हैं । बहुरि व्याकरणवाले शब्दाद्वैतकं कहै हैं । वेदांती पुरुपाद्वैत कह है। बौद्धमती संवेदनाद्वैत कहै है । सो ये सब नय एकांत
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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