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________________ दूसरे भाग में उत्सवको निर्णय लिख्यो गयो है । तीसरे भाग में उत्सवनकी भावना तथा स्वरूपनकी भावना लिखी गई है चौथे भाग में सेवा साहित्य के चित्र तथा शृंगार आभूषण वस्त्रा दिकनके चित्र तथा पाग, कुल्हे, टिपारो, पगा, टोपी, मुकुट आदिवे चित्र तथा उत्सवनकी आरतीनके, एवं नानाप्रकारकी फूलमण्डली बङ्गला, डोल, हिंडोरा आदिके चित्र दिये गये हैं । या प्रकार तन, मन, धन और परिश्रमसों भगवदीय वैष्णवनके उपका रार्थ यह ग्रन्थ तैयार करके छापवेमें आयो है यासों अद्भुत, अपूर्व और अमूल्य है और सेवासम्बन्धी ऐसो ग्रन्थ आजपर्य्यन्त कहूँ नहीं छप्यो तासों प्रत्येक मन्दिर और भगवदीयन के घरघरमें रहने लायक है याते श्रीवल्लभ सम्प्रदाय के पुष्टिलीला के रसिक जननसों मेरी यह प्रार्थना है जो " श्री वल्लभपुष्टिप्रकाश " या ग्रन्थको ऐसो बड़ो नाम धरयो सो श्रीवल्लभ सम्प्रदाय की पुष्टिलीलाको वर्णन करनो तो अति अगाध और अपार है । मैं संसारी जीव मेरी सामर्थ्य और योग्यता - कहाँ जो श्रीवल्लभ सम्प्रदायकी पुष्टिलीलाको प्रकाश कर सकूँ । जैसे पेंटी समुद्रमें तेरनो चाहे और खद्योत सूर्यमण्डलकी समता करयो चाहें, यह सर्वथा असम्भव है । परन्तु श्रीवल्लभप्यारे यही नाममें ऐसो गुण है कि, जैसे बालक अबुद्ध और अज्ञानीभी होय तो ताकी प्यारकी वार्ता बहोत आछी और प्रिय लगे है | चाहे बालककों बात समझवे और बोलवेको ज्ञानभी नहीं है तथापि बड़े लोगन के वचन सुनके वाही रीहिसों बोलवेको उत्साह करे है. तथा ढिठाई और अमर्याद करिके महान पुरुषनकी देखादेखी करने लग जाय है ।
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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