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________________ अकाम मरणीय NAS टिप्पणी-जैनदर्शन में शुद्ध सम्यक्त्वी जीव के मरण को पंडित मरण, माना है और ऐसी आत्मा अधिक से अधिक संसार में एक ही बार फिर से जन्म धारण करती है और सामान्य जीवों को अनेक बार जन्म मरण करने पड़ते हैं। (१) इस पहिली स्थिति को भगवान महावीर ने इस प्रकार बताई है कि जो इन्द्रिय विषयों में आसक्त है वह बालक (मूर्ख) है और वह बहुत से कर कृत्य करता रहता है। टिप्पणी-तो कोई हिंसादि अत्यन्त कर कर्म करता है वही भकाम... मरण का अनुभव करता है। (५) जो कोई भोगोपभोगों में आसक्त होकर असत्य कर्मों को आचरता है उसीकी ऐसी मान्यता होती है कि 'मैंने परलोक देखा ही नहीं है और इन भोगोपभोगों का सुख तो प्रत्यक्ष है,। ५६) 'ये भोगोपभोग तो हाथ में आए हुए प्रत्यक्ष हैं और जो पीछे होने वाला है वह तो समय पाकर आगे होगा (इसलिये उसकी चिन्ता क्या ?) परलोक किसने देखा है ? और कौन जानता है कि परलोक है या नहीं। ७) जो दूसरों को होगा वही मुझे भी होगा',-इस तरह यह मूर्ख बड़बड़ाया करता है और इस तरह कामभोग को आसक्ति से अन्त में कष्ट भोगता है। भोगों की आसक्ति का परिणाम ? (८) इस कारण वह त्रस और स्थावर जीवों को दंडित करना शुरू करता है और अपने लिये केवल अनर्थ से (हेतु पूर्वक अथवा अहेतु से) प्राणि समूह की हत्या कर डालता है।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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