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________________ ४५० उत्तराध्ययन सूत्र - - ~ ~ ~ " r - .- ~ ~ ~ . . . . संलेखना (अात्मदमन करनेवाली) तपश्चर्या कम से कम ६ महीने की, मध्यम रीति से एक वर्ष की और अधिक से अधिक १२ वाँ तक की होती है। (२५०) प्रथम चार वा सक पांच विगय (बी, गुड़, तेल, दही, दूध ) का त्याग करे और फिर बाद के चार वर्षों तक भिन्न २ प्रकार की सपश्चर्या करे। (२५१) नौवें तथा दसवें वर्ष-इन दोनों वर्षों तक उपवाग एवं एकान्तर उपवास के पारणा के बाद यायंबिल करे और ग्यारहवें वर्ष के पहिले ६ महीने तक अधिक तप श्वर्या न करें। (२५२) ग्यारहवें वर्ष के अन्तिम ६ महीनों में तो छठ, पाठम , आदि कठिन तपश्चर्या धारण करे और बीच बीच में ____ उसी संवत्सर में आयंबिल तप भी करें। टिप्पणी-आयंबिल अर्थात् रसविहीन भोजन मात्र एक ही बार प्रक्षण __ करना। (२५३) वह मुनि वारहवें वर्ष के प्रारंभ तथा अन्त में एक सरीखा तप करे ( प्रथम श्रायंबिल, बीच में दूसरा तप और उस वर्ष के अन्त में पायंबिल करे उन कोटी सहित आयंबिल तप कहत हैं) और बीच २ में मासखमण या अर्धमास खमण जैसी छोटी मोटी तपश्चयाएं करके इन बारह वर्षों को पूर्ण करे। टिप्पणी-ऐसी तपश्चर्याएं करते समय यीच में अथवा तपश्चर्या के पीछे मृत्यु भाने का अवसर हो तब मृत्यु पर्यत का अणसण धारण
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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