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________________ उत्तराध्ययन सूत्र (२३१ ) अच्युत स्वर्ग के देवों की जघन्य एवं उत्कृष्ट श्रायु क्रमशः २१ सागर को तथा २२ सागर की है । (२३२) प्रथम मैवेयक स्वर्ग के देवों की जघन्य एवं उत्कृष्ट प्रायु क्रमशः २२ सागर की तथा २३ सागर की है । ४४८ 1 (२३३) द्वितीय ग्रैवेयक स्वर्ग के देवों की जघन्य एवं उत्कृष्ट आयु क्रमशः २३ सागर की तथा २४ सागर की है। ( २३४) तृतीय मैत्रेयक स्वर्ग के देवों की जघन्य एवं उत्कृष्ट आयु क्रमशः २४ सागर की तथा २५ सागर की है । (२३५) चौथे मैवेयक स्वर्ग के देवों की जघन्य एवं उत्कृष्ट आयु क्रमशः २५ सागर की तथा २६ सागर की है । (२३६) पांचवे मैवेयक स्वर्ग के देवों की जघन्य एवं उत्कृष्ट आयु क्रमशः २६ सागर की तथा २७ सागर की है । ( २३७) ट्टे ग्रैवेयक स्वर्ग के देवों की जघन्य एवं उत्कृष्ट श्रायु क्रमशः २७ सागर की तथा २८ सागर की है । (२३८) सातवें ग्रैवेयक स्वर्ग के देवों की जघन्य एवं उत्कृष्ट आयु क्रमशः २८ सागर को तथा २९ सागर की है । ( २३९) आठवें ग्रैवेयक स्वर्ग के देवों की जघन्य एवं उत्कृष्ट श्रायु क्रमशः २९ सागर की तथा ३० सागर की है । (२४०) नौवें मैत्रेयक स्वर्ग के देवों की जघन्य एवं उत्कृष्ट आयु क्रमशः ३० सागर की तथा ३१ सागर की है । (२४१ ) ( १ ) विजय ( २ ) वैजयंत ( ३ ) जयंत ( ४ ) अपरा-जित - इन चारों विमानों के देवों को जघन्य एवं उत्कृष्ट आयुस्थिति क्रमशः ३१ सागर तथा ३३ सागर की है ।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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