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________________ जीवविभक्ति ) एक ही स्थान में रहने की अपेक्षा से उन रूपी अजीव पुद्गलों की जघन्य स्थिति एक समय और उत्कृष्ट स्थिति असंख्यात काल तक को तीर्थकर भगवानों ने कही है। . १४) वे रूपी पुद्गल परस्पर जुदे २ होकर फिर मिल जाय उसका अन्तर जघन्य एक समय का और उत्कृष्ट अनंत काल तक का है। (१५) ( अब भाव से पुद्गल के भेद कहते हैं ) वर्ण, गंध, रस, पर्श तथा संस्थान (आकृति ) की अपेक्षा से इनके ५ भेद हैं। (१६) पुद्गलों के वर्ण ( रंग ) पांच प्रकार के होते हैं:-(१), काला, (२) पीला, (३) लाल, (४) नीला, और (५) सफेद। (१७) गंध की अपेक्षा से उनके दो भेद हैं:-(१) सुगन्ध, और (२) दुर्गध । (१८) रस पांच प्रकार के होते हैं:-तीखा, (२) कंडुअा, (३) कसैला, (४) खट्टा और (५) मीठा। (१९) स्पर्श ८ प्रकार के होते हैं:-(१) कर्कश, (२) कोमल, (३) भारी, (४) हलका(२०) (५) ठंडा, (६) गर्म, (७) चिकना और (८) रूखा। (२१) संस्थान (आकृति) के ५ भेद है:-(१) परिमण्डल (चडी जैसा गोल ), (२) वृत्ताकार (गेद जैसा गोल ), (३) त्रिकोणाकार, (४) चतुर्भुजा (५) समचतुभुजाकार ।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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