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________________ अनुक्रमणिका अध्ययन १-विनयश्रुत विनीत के लक्षण-अविनीत के लक्षण और उसका परिणामसाधक का कठिन कर्तव्य-गुरुधर्म-शिप्यशिक्षा-चलते, उठते, वैठने तथा भिक्षा लेने के लिये जाते हुए साधु का आचरण। २-परिपह भिन्न भिन्न परिस्थितियों में भिन्न २ प्रकार के आये हुए आक· स्मिक संकटों के समय भिक्षु किस प्रकार सहिष्णु एवं शांत बना रहे आदि घातों का स्पष्ट उल्लेख । ३-चतुरंतीय २६ मनुष्यस्व, धर्मश्रवण, श्रन्दा,संयम में पुरुपार्थ करना-इन चार आत्मविकास के अंगों का क्रमपूर्वक निर्देश-संसारचक्र में फिरने का कारण-धर्म कीन पाल सकता है-शुभ कमाँ का सुन्दर परिणाम । ४-असंस्कृत जीवन की चंचलता-दुष्ट कर्म का दुःखद परिणाम कमाँ के करनेवाले को ही उनके फल भोगने पढते हैं-प्रलोभनों में जागृति-स्वच्छंद को रोकने में ही मुक्ति है। -५-अकाममरणीय अज्ञानी का ध्येयशून्य मरण- क्रूरकर्मी का विलाप-भोगों की आसक्ति का दुष्परिणाम-दोनों प्रकार के रोगों की उत्पत्ति-मृत्यु
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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