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________________ ३०६ उत्तराध्ययन सूत्र - - ~ Vvv~ ~ मारने पर भी बहुत से तो अपना जुआ ही तोड़ डालते हैं और बहुत से कुमार्ग में ले भागते हैं। (५) कोई २ चलते २ अर्रा कर गिर पड़ते हैं, कोई २ बैठ जाते है; कोई २ लेट जाते हैं, और मारने पर भी उठते नहीं हैं। कोई २ बैल उछल पड़ते हैं, कोई २ मेंढक की तरह कुलांचे मारने लगते हैं, तो कोई धूर्त बैल गाय देखकर उसके पीछे दौड़ने लगते हैं। (६) बहुत से मायावी वैल माथा नीचा करके गिर पड़ते है, कोई २ मार पड़ने से गुस्से में आकर रास्ता छोड़ कुरस्ते में चल पड़ते हैं। कोई २ गरियार वैल ढोंग कर मृतवत् पड़ जाते हैं तो कोई दम छोड़कर भगने लगते हैं। (७) कोई २ दुष्ट बैल अपनी रासों को ही तोड़ डालते हैं। कोई २ स्वच्छंदी वैल अपना जुन्या ही तोड़ डालते हैं और कोई २ गरियार बैल तो फुफकार मारकर गाड़ीवान के हाथ से छूटते ही दूर भाग जाते हैं। (८) जैसे गाड़ी में जुते हुए गरियार बैल गाड़ी को तोड़ कर गाड़ीवान को हैरान कर भाग जाता है वैसे ही वैसे स्व. च्छंदी शिष्य भी सचमुच धर्म (संयम-धर्म ) रूपी गाड़ी में जुते रहने पर भी वैर्य खोकर संयमधर्म को भंग कर देते हैं। (सच्चे मन से संयम का पालन नहीं करते) (९) गाचार्य अपने शिष्यों के विषय में कहते हैं:-( मेरे) कोई २ कुशिष्य विद्या की ऋद्धि के गर्व से मदोन्मत्त एवं अहंकारी होकर फिरते हैं, कोई २ रसलोलुपी हो गये हैं,
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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