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________________ ३०० उत्तराध्ययन सूत्र से ग्राहार न करने से संयमपालन हुया समझना चाहिय)। टिप्पणी-संयमी जीवन को टिकाये रखने के लिये हो भोजनग्रहण करने की आज्ञा है। यदि ऐसे भोजन से-जिससे शरीर रक्षा तो होती हो किन्तु संयमी जीवन नष्ट होता हो तो ऐसा भोजन साधु हर्गिज़ न करे। ऐसा विधान करने में संयमी जीवन की मुख्यता बताने का उद्देश्य है। संयमी जीवन को टिकाये रखने के लिये हो भोजन है, भोजन के लिये संयमी जीवन नहीं है। (३६) आहार-पानी के लिये जाते समय भिक्षु को अपने सव पात्र तथा उपकरणों को बराबर साफ करके ही भिक्षा को जाना चाहिये । भिक्षा के लिये अधिक से अधिक आधे योजन तक ही जाय । (आगे नहीं)। (३७) श्राहार करने के बाद, साधु चौथी पोरसी में पात्रों को अलग वांधकर रख देने और यावन्मात्र पदार्थों को प्रकट करने वाले स्वाध्याय को करे । (३८) चौथी पोरसी के चौथे भाग में स्वाध्यायकाल से निवृत्त होकर गुरू की वन्दना कर साधु वस्त्र, , पात्र इत्यादि की प्रतिलेखना करे। ,टिप्पणी-चौथी पोरसी का चौथा भाग अर्थात् सूर्यास्त के पहिले दो वटिका का समय । (३९) मल, मूत्र त्याग करने की भूमि से लौट आने के बाद (इरिया वहिया क्रियायें करने के बाद पीछे याकर) सब दुःखों से छुडाने वाले कायोत्सर्ग को क्रमपूर्वक करे ।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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