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________________ २८८ उत्तराध्ययन सूत्र हैं। इसलिये जीव अपने कर्म से ही ब्राह्मण, कर्म से ही क्षत्रिय, कर्म से ही वैश्य और कर्म से ही शूह होते हैं, जन्म के कारण नहीं । जैसे जो कोई कर्म करेगा - जैसी जिसकी क्रिया होगी तदनुसार ही उसकी जाति मानो जायगी । गुणों की न्यूनाधिकता से ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अथवा चांडाल आदि के भेद किये गये हैं । ब्रह्मचर्य, अहिंसा, व्याग तथा तपश्चर्यादि गुणों का ज्यों ज्यों विकास होता जाता है त्यो २ ब्राह्मणत्व का विकास होता जाता है । सच्चा ब्राह्मणत्व साधन कर ब्रह्म ( आत्मस्वरूप ) या आत्म ज्योति प्राप्त करना - यही सबका एकतम लक्ष्य है । जातिपांति के क्लेशों को छोड़ कर सच्चे ब्राह्मणस्त्र की भाराधना करना यही सबका कर्तव्य होना चाहिये । ऐसा मैं कहता हूँ इस तरह 'यज्ञीय' नामक पच्चीसवां अध्ययन समाप्त हुआ ।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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