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________________ केशिगौतमीय २५३ (२५) केशी श्रमण के इस तरह प्रश्न पूँछने के बाद गौतम मुनि ने उनको यह उत्तर दिया:-- “ शुद्ध बुद्धि के द्वारा ही धर्म - तत्त्व का तथा परमार्थ का निश्चय किया जा सकता है । " टिप्पणी- जब तक ऐसी शुद्ध तथा उदार बुद्धि (निष्पक्षता ) नहीं होती तब तक साधक, साध्य ( लक्ष्य ) को अपेक्षा साधन की ही तरफ़ विशेष झुका रहता है । इसीलिये महापुरुषों ने काल को देखकर वैसी कठिन क्रियाओं का विधान किया है । (२६) (२४ तीर्थंकरो में से ) प्रथम तीर्थकर ( भगवान ऋषभ ) `के समय के मनुष्य बुद्धि में जड़ होने पर भी प्रकृति के सरल थे | और अन्तिम तीर्थंकर ( भगवान महावीर ) के समय के मनुष्य जड़ ( बुद्धि का दुरुपयोग करनेवाले ) तथा प्रकृति के कुटिल हैं । इन दोनों के बीच के तीर्थकरों के समयों के जीव सरल बुद्धिवाले तथा प्राज्ञ थे । इसीलिये परिस्थिति को देखकर उसके अनुसार भगवान महावीर ने कठिन विधिविधान किये हैं । A (२७) ऋषभ प्रभु के अनुयायी पुरुषो को धर्म समझना होता था परन्तु समझने के बाद उसे धारण करने में होने के कारण वे भवसागर पार उतर जाया करते थे इन अन्तिम भगवान ( महावीर स्वामी ) के को धर्मं समझाना तो सरल है परन्तु उनसे पलाना क यही कारण है कि इन दोनों भगवानों के और बीच के २२ X ་ AN रूप >
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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