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________________ २३६ उत्तराध्ययन सूत्र ~ ~ vvvvxAMA/wwwww टिप्पणी-जैन धर्मानुसार नेमिनाथ चौबीस तीर्थंकरों में से बाईसवें नीर्थकर है। भनेक जन्मों में तीव्रतर पुरुषार्थ करते रहने के बाद ही तीर्थकर पद मिलना है। जिस समय तीर्थकर भगवान अभिनिष्क्रमण करते ( दीक्षा लेते ) है उस समय देवों में भी प्रशस्त देव वहां आकर्पित होकर उपस्थित होते हैं। उन्हें लोकांतिक देव कहते हैं । (२२) इस प्रकार अनेक देवों तथा मनुष्यों के परिवारों से घिरे हुए वे मिश्वर रन की पालकी पर सवार हुए और द्वारका नगरी (अपने निवासस्थान) से निकल कर रैवतक (गिरनार ) पर्वत के उद्यान में गये। (२३) उद्यान में पहुँच कर वे देवनिर्मित पालकी से उतर पड़े और एक हजार साधकों के साथ उनने चित्रानक्षत्र में दीक्षा अंगीकार की। टिप्पणी-श्रीकृष्ण के पुत्र, बलदेव के ७२ पुत्र, श्रीकृष्ण के ५६३ भाई, टग्रमेन के ८ पुत्र, नेमिनाय के २८ भाई, देवमेन मुनि आदि १०० तथा २५० यादव पुत्र, ८ बड़े राजा, पुत्र सहित अक्षोम और वरदत्त इस तरह सब मिलकर १००० साधकों के साथ चित्रा नक्षत्र में भगवान नेमिनाथ ने दीक्षा धारण की थी। (२४) पालकी में से उतर कर दीक्षा धारण करते समय उनने हाय से अपने सुगंधमय, सुकोमल धुंघराल वालों का पंचमुष्टि लांच किया तथा समाधिपूर्वक साधुन ग्रहण किया। ५.जितेन्द्रिय तथा लुंचित केश उनको देखकर श्रीकृष्ण महा ज ने कहा - हे संयतीश्वर ! श्राप अपने अभीष्ट श्रेय अनु कभी कि व प्राप्त करो।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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