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________________ ब्रह्मचर्य समाधि के स्थान १५९ . . मार्ग से पतन होने का डर है। इसलिये सच्चे ब्रह्मचारी को पर्दे के या भीत के भीतर से आते हुए उक्त प्रकार के । शब्दों को नहीं सुनना चाहिये। टिप्पणी-ब्रह्मचारी जहां ठहरा हो वहां दीवाल के पीछे से भाते हुए स्त्री पुरुषों की रतिक्रीड़ा के शब्द भी विपयजनक होने के कारण उसको नहीं सुनने चाहिये मोर न उनका चिन्तवन ही करना चाहिये। (६) पहिले गृहस्थाश्रम में स्त्री के साथ जो जो भोग भोगे थे अथवा रतिक्रीड़ाएं की थीं उनका जो पुनः स्मरण नहीं करता है वही आदर्श ब्रह्मचारी (साधु ) है । शिष्यः-"क्यों, भगवन् ?" । प्राचार्य:- "यदि ब्रह्मचारी पहिले के भोगों अथवा , रतिक्रीड़ाओं को याद करे तो उसको ब्रह्मचर्यपालन में शंका, आकांक्षा तथा विचिकित्सा होने की संभावना है जिससे उसके ब्रह्मचर्य के भंग होजाने, उन्माद होजाने तथा शरीर में विषयचिंतन से रोगादिक होजाने और भगवान् कथित पुण्यपथ से पतित होजाने का डर है। इसलिये निग्रंथ साधु को पूर्व विषयभोग या रतिक्रीड़ाओं को याद नहीं करना चाहिये। (७) जो अतिरस (स्वादिष्ट ) अथवा इन्द्रियों को विशेष . पुष्ट करने वाले भोजन नहीं करता वही साधु है। - शिष्य:-"क्यों, भगवन् १". .. ' आचार्य:-"स्वादिष्ट भोजन करने से अथवा विशेष • पुष्टिकर भोजन करने से उपयुक्त सभी दोष आने की
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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