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________________ १४६ उत्तराध्ययनसूत्र (५१) इस तरह उक्त क्रम में ये छहों जीव जरा ( बुढ़ापा ) तथा मृत्यु के भय से खिन्न होकर धर्मपरायण बने और दुःखों के अंत ( मोक्ष ) की शोधकर वे क्रमपूर्वक बुद्ध ( केवल ज्ञानी ) हुए । (५२) वीतराग ( जीत लिया है मोह जिसने ऐसे ) जिनेश्वर के शासन में पूर्व भव में भाई हुई भावनाओं का स्मरण करके वे छहों जीव दुःखों के अन्त ( मोक्ष ) को प्राप्त हुए । (५३) देवी कमलावती, राजा, पुरोहित ब्राह्मण ( भृगु ), उसकी पत्नी जसा त्राह्मणी, उसके दोनों पुत्र इस तरह ये छहों जीव मुक्ति को प्राप्त हुए । सुधर्म स्वामी ने जंबूस्वामी को कहा :- 'ऐसा भगवान् ने कहा था' इस प्रकार इपुका - । रीय नामक चौदहवां श्रध्ययन समाप्त हुआ । 4 1 !! } पा
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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