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________________ ११८ उत्तराध्ययन सूत्र - - AVvvvvvv भोगों की प्रासक्ति में अब तक जरा भी न्यूनता नहीं पाई थी, परन्तु विशुद्ध एवं गाढ़ भ्रातृ प्रेम ने भाई से मिलने की अपार उत्कण्ठा जागृत करदी। उसने उनको ढूंढ निकालने के लिये "पासि दासा मिगा सा चांडाला श्रमरा जहा" यह प्राधा श्लोक देश देश में दिढोरा पिटवा कर उसने प्रसिद्ध करा दिया और घोषणा की कि जो कोई इस श्लोक को पूर्ण करेगा उसे श्राधा राज्य दिया जायगा। यह बात देश के कोने कोने में फैल गई। संयोग से चित्र मुनि गाम गाम विचरते हुए कंपिला नगरी के उद्यान में पधारते है। वहां का माली उक्त अर्ध ग्लोक गाते हुए वृत्तों में पानी सींच रहा है। मुनि उस अधं श्लोक को सुन कर चकित हो जाते है । अन्त में उस के द्वारा सर्व वृतान्त सुन कर उस अर्ध श्लोक को “ इमाणो छठिया जाई अन्न मन्नेण जा विणा" इन दो चरगों द्वारा पूर्ण करते है। माली राज्य मण्डप में प्राकर भरे दरबार में उस पूर्ण श्लोक को सुनाता है ! उसके सुनते ही ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती माली द्वारा कहे गये वृतान्त में अपने भाई को देखते ही मूर्धित हो जमीन पर गिर पड़ता है। ऐसी स्थिति में राज्य पुरुष उस माली को कैद कर लेते है। अन्त में माली सारा वृतान्त कह सुनाता है और जिसने उस श्लोक को पूर्ण किया, था उन योगीराज को दरबार में उपस्थित करता है। ब्रह्मदत्त अपने भाई का अपूर्व प्रोजस्वी शरीर देख कुन स्वस्थ (सावधान) होता है और प्रेम गद्गद् होकर भाई म पंछता है कि है भाई ! मैं तो ऐसी अनुपम समृद्धि, पाकर भोग रहा हूं और श्राप इस न्यास दुःखी से दुखी हावर फिरते हो इसका की श्रिम के।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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