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________________ उत्तराध्ययन सूत्र तोत होने ( अवधि पूरी हो जाने ) पर झड़ जाता है उसी तरह मनुष्यों का जीवन भी आयु के पूर्ण होते ही खिर जाता है । इसलिये हे गौतम! समय मात्र का भी प्रमाद न कर २) कुश के भाग (लोक) पर स्थित श्रोस की बूंद जैसे क्षणस्थायी है वैसे ही मनुष्यों के जीवन को ( क्षणभंगुर ) समझ कर, हे गौतम ! एक समय का भी प्रमाद न कर | टिप्पणी- संसार की असारता दिखाकर अप्रमत्त होने पर ज़ोर दिया है । ८० ( ३ ) ( फिर ) अनेक विनों से भरपूर और क्षण क्षण घटती हुई ( नाशवंत ) आयु वाले इस जीवन में पूर्व-संचित कर्मों को जल्दी से दूर कर । हे गौतम ! इसमें एक समय का भी प्रसाद न कर । ( ४ ) यह मनुष्यभव अत्यन्त दुष्प्राप्य है तथा यह नीवों को बड़े • ही लंबे काल के बाद कभी मिलता है, क्योंकि कर्मों के फल गाढ़ (घोर ) होते हैं । इसलिये हे गौतम ! एक समय का भी प्रमाद न कर | टिप्पणी-- गाढ़ अर्थात जो भोगे बिना न कुठे ऐसे घट होते हैं । मनुष्य जीवन के पहिले का क्रमविकास तथा वहां का कालप्रमाण, (५) पृथ्वीकाय ( भूमि रूप ) के जीव की उत्कृष्ट स्थिति (पुनः पुनः पृथ्वीका में जन्म स्थिति प्रमाण ) असंख्यात वर्षो की है। इस लिये हे गौतम ! एक समय का भी प्रमाद् न कर
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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