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________________ एलक ५५ । आयु में कल्याण मार्ग को क्यों न जाना (साधा) जाय ? (२५) यहां भोगों से अनिवृत्त ( कामासक्त) हुए जीवका स्वार्थ (आत्मोन्नति ) हना जाता है और ऐसा पुरुष न्याय (मोक्ष) मार्ग को सुन कर भी 'उस मार्ग से पतित हो जाता है। टिप्पणी-कामासक्ति यह तमाम रोगों और आपत्तियों का मूल है । इससे हमेशा सावधान रहना चाहिये। (२६) "जो कामभोगों से निवृत्त रहता है उसकी आत्मोन्नति हनी नहीं जाती, किन्तु इस अपवित्र शरीर को छोड़ कर वह देव स्वरूप को प्राप्त करता है-ऐसा मैंने सुना है" । (२७) ऐसा जीव, जहां ऋद्धि, कीर्ति, कांति, विशाल आयु, तथा उत्तम सुख होते हैं ऐसे मनुष्यों के वातावरण में ( मनुष्ययोनि में ) जाकर पैदा होते हैं । सब का सारांश यह है-- (२८) बालक ( मूर्ख) का बालत्व ( मूर्खपन ) देखो जो धर्म को छोड़कर अधर्म को अंगीकार कर (अर्थात् अधर्मी बनकर) नरक में उत्पन्न होता है। (२९) और सत्य धर्म पर चलने वाले धीरपुरुष का धीरपन देखो जो धर्मिष्ठ होकर, अधर्म से दूर रह कर, देवत्व प्राप्त करता ( देवगति में उत्पन्न होता) है। (३०) पंडित मुनि; इस प्रकार बाल तथा पंडित भावों की तुलना करे और बाल भाव को छोड़कर पंडित भाव का सेवन करे।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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