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बम्भाव
आरा०
|| अपने अपने विषयभूत क्षेत्रसे वाहिर बहुत योजन प्रमाण दूरके क्षेत्रोंमें स्थित पदार्थों के स्पर्श गंध आदि । || विषयोंके ग्रहण करनेकी सामर्थ्य समझ लेनी चाहिये।
___अपने अपने स्वरूपकी सामर्थ्य के प्रगट करने और कथन करनेमें कुशल वेगवती महाराहिणी PM आदि तीन विद्या देवताओंसे प्रगट होकर भी जिप्स मुनिका चारित्र चलायमान न हो वह मुनि दुस्तर
|| दशपूर्वरूपी समुद्रका पार पाता है और उसी के दशपूर्वित ऋद्धि प्राप्त होती है । तथा जो संपूर्ण श्रुत
| केवली होते हैं उनके चतुर्दशपूर्वित्व नामकी ऋद्धि होती है।। Ma अंतरिक्ष : भौम २ अंग ३ खर : व्यंजन ५ लक्षण छिन और स्वप्न ८ ये आठ महानिभिच
हैं। सूर्य चंद्रमा ग्रह नक्षत्र और तारागण के उदय और अस्त के आधीन भूत भविष्यत् कालका भित्र भित्र ME रूपसे फल प्रदर्शन करना अंतरिक्ष नामका महानिमित है। पृथ्वी की कठोरता कोमलताविकाता और
रुक्षलादिके निश्चयसेवा पूर्व पश्चिम आदि दिशाओं में सूत्र पडते देखकर अमुक चीजकी वृद्धि होगी। वा अमुक चीजकी हानि होगी वा अमुरुका जप होगा वा अरुका पराजा होगा इसादि बातोंका जान लेना वा जमीनके भीतर गढे हुए सोने चांदी आदि पर्थों का जान लेना भौम नामका महा-1 निमिच है । अंग और उपांगोंके दर्शन स्पर्शन आदिसे तीनों कालमें होनेवाले सुख दुःख आदिका
श्चिय कर लेना अंग नामका महानिमिच है । अक्षरात्मकवाअनक्षरात्मक शुभ अशुभ शब्दों के सुनना || इष्ट वा अनिष्ट फलका निश्चय कर लेना स्वर नामका महानिभित है। मस्तक मुख ग्रीवा आदि स्थानों का पर तिल मसा-लहसन आदि चिह्नोंके देखनेसे तीन काल संबंधी हित अहितका जान लेना जा ९५३
नामका महानिमिच है। श्रीवृक्ष स्वस्तिक (सांतियां) मुंगार (झाडी) कलश आदि लागों के देखनेसे
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GBANGANGACASSGAR-
SAMBASSAMBO
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