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________________ बजरा भाषा elpeBA GHELUGU निषधाचलको स्पर्श करनेवाले पूर्व-दक्षिण दिशाके रत्नकूटमें नागकुमार देवोंका स्वामी वेणुदेव निवास | करता है। नीलाचलको स्पर्श करनेवाले पूर्व-उचरके सर्वरत्न कूटमें सुपर्णकुमार देवोंका स्वामी वेणुनीता अध्याय देव निवास करता है । निषधाचलसे स्पृष्ट भागके धारक पश्चिम-दक्षिणके वैलंब कूटमें पवन कुमार देवों का स्वामी वैलंब देव रहता है एवं नीलाचलसे स्पृष्ट भागवाले पश्चिम-उत्तरकोणके प्रभंजन कूटमें प्रभंजन नामका पवन कुमारोंका स्वामी रहता है ॥ ३४॥ जंबूद्वीपके पर्वत सरोवर आदिका दूनापन पुष्कराध-आधे पुष्कर द्वीपमें ही क्यों कहा जाता है। 5समस्त पुष्करद्वीपमें क्यों नहीं ? इसका स्पष्टीकरण सूत्रकार करते हैं प्राङ्मानुषोत्तरान्मनुष्याः॥३५॥ सूत्रार्थ-मानुषोचर पर्वतसे पहिले ढाई द्वीपमें मनुष्य हैं। ___ मानुषाचर पर्वतसे पहिले पहिले ही मनुष्य हैं बाहिर नहीं हैं इसलिए ऊपर जो क्षेत्रोंका विभाग Toll कह आए हैं वह मानुषोचर पर्वतसे आगे नहीं है । अथवा जहाँपर इंद्रियोंके भेदोंका उल्लेख किया गया । है वहांपर 'कृमिपिपीलिकाभ्रमरमनुष्यादीनामेककवृद्धानि' यह सूत्र कहा गया था परंतु वहांपर यह नहीं। मालूम हुआ था कि-उन मनुष्योंके रहनेका स्थान कोनसा है ? इसलिए मनुष्योंके आधार विशेषके प्रतिपादनकेलिये यह कहा गया है कि-जंबूद्वीपसे लेकर मानुषोचर पर्वत के पहिले पहिले मनुष्य हैं उससे द्रा बाहिर नहीं। . इस प्रकार मानुषोचर पर्वतका व्याख्यान कर दिया गया । इस मानुषोचर पर्वतसे आगे उपपाद जन्मवाले देवगण और समुद्रातवाले मनुष्योंको छोड कर विद्याधर और ऋद्धिधारी भी मनुष्य नहीं SINGHSDBRJASRIGANGANA BArifyCesiksakse -
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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