SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 922
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ REMICC ___उन कमलोंके भीतर कर्णिकाकै मध्यभागके एक प्रदेशमें रहनेवाले, शरदऋतु के निर्मल और पूर्ण चंद्रमाकी कांतिके समान मनोहर कांतिके धारक, एक कोश लंबे, आधा कोश चौडे और कुछ कम एक कोश ऊंचे प्रासाद हैं उन प्रासादोंमें रहनेवाली श्री आदिक देवियां हैं। ध्यादीनामितरेतरयोगे इंद्वः॥१॥ । 'श्रीश्च होश्च धृतिश्च कीर्तिश्च बुद्धिश्च लक्ष्मीश्च श्रीद्रीधृतिकीर्तिबुद्धिलक्ष्म्यः" यह यहां श्रीआदिका आपसमें इतरेतरयोग द्वंद्व समास है । पद्म आदि सरोवरों में क्रमसे श्री आदि देवियोंका निवास समझ लेना चाहिये अर्थात् पद्म सरोवरके पद्म कमलमें श्रीदेवी रहती है । महापद्म सरोवरके महापद्म कमलमें ह्रीदेवी रहती है । तिगिंछ सरोवरके तिगिंछ कमलमें धृतिदेवी रहती है। केसरी सरोवरके केसरीकमलमें कीर्ति नामकी देवी रहती है। महापुंडरीक सरोवरके महापुंडरीक कमलमें बुद्धि नामकी देवी रहती है और पुंडरीक नामके सरोवरके पुंडकि कमलमें लक्ष्मी नामकी देवी रहती है। स्थितिविशेषनिर्ज्ञानार्थ पल्योपमवचनं ॥२॥ देवियोंकी सामान्यरूपसे स्थितिके विद्यमान रहते भी श्री आदि देवियोंकी विशेष स्थिति जनाने के लिए सूत्रमें 'पल्योपमस्थिति' शब्दका उल्लेख किया गया है पल्यापमा स्थितिरासांताः पल्पोपमस्थितयः' अर्थात् श्री आदि देवियोंकी एक पल्यप्रमाण स्थिति है। परिवारनिनिार्थ सामानिकपारिषत्कवचनं ॥३॥ __श्री आदि देवियों के परिवारके प्रतिपादन करनेकेलिए 'सामानिकपारिषत्क' शब्दका ग्रहण है। समान स्थानमें जो हों वे सामानिक कहे जाते हैं। समान शब्दसे "तदादेव" इस सूत्रसे ठञ् प्रत्यय ८१८
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy