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विवार
पश्चिम विदेहके उत्तर भागके भी चार वक्षारपर्वत और तीन विभंगा नदियोंसे विभाजित आठ ||७ ६|| खंड हैं। उन आठो खंडोंका आठ चक्रवर्ती उपभोग करते हैं। यहांगर चंद्र १ सूर्य २ नाग ३ और देव ४ ॥ नामोंके धारक ये चार वक्षारपर्वत हैं । इन वक्षारपर्वतों के अंतरालमें रहनेवाली गंभीरमालिनी १ फेन 18/ || मालिनी २ और ऊर्मिमालिनी ३ इन तीन नामों की धारक तीन विभंगा नदियां हैं। तथा इन चार ||
वक्षारपर्वतोंसे और तीन विभंगा नदियोंसे विभाजित जो आठ खंड हुए हैं वे आठ देश हैं और उनके || || वा १ सुवप्र २ महावा ३ ववान ५ वल्गु सुवल्गु ६ गंधिल ७ और गंवमालिनी ये नाम हैं। इन || आठो देशोंकी विजया १ वैजयंती २ जयंत। ३ अपराजिता ४ चक्रपुरी ५ खड्गपुरी ६ अयोध्या ७॥
| और अवध्या ८ इन आठ नामोंकी धारक आठ नगरी राजधानी हैं । इन आठो देशोंमें प्रत्येक गंगा पर और सिंधु नामकी धारक दो दो नदियां हैं। एक एक विजयापर्वत है। इन नदियों और विजया
॥ पर्वतोंका वर्णन पहिलेकी नदियों और विजयाओं के समान समझ लेना चाहिये । यहाँपर जो चार वक्षार | ॥ पर्वत कहे गये हैं उनमें प्रत्येकमें चार चार कूट हैं और उनके पहिले ही के समान सिद्धायतन स्वनाम
पूर्वापर देशोंके नामोंके समान नामोंके धारक हैं। जिसप्रकार सीता नदीके अडतालीस तीर्थ कार || कह आए हैं उसी प्रकार सीतोदा नदीके भी अडतालीस तीर्थ समझ लेने चाहिये।
विदेहक्षेत्रके मध्यभागमें मेरु नामका पर्वत है। वह पृथ्वीतलसे निन्यानवे हजार योजन ऊंचा है। l नीचे जमीनमें एक हजार योजन गहरी नींवका धारक है इसका अधस्तलमें विस्तार दश हजार नम्बै आइ १००९० योजन और एक योजनके ग्यारह भागोंमें दश भाग प्रमाण है । अधस्त लमें इसका परकोट ८५
१-दूसरी प्रतिमें-धर्मिपालिनी, पाठ है।
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