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________________ ०२० भाषा ८५३ बूट के ऊपर भी एक प्रासाद है और उसमें एक पल्योपम आयुको धारक भोगावती नामकी दिक्कुमारी रहती है। बाक कि उदक्कुरु आदि जो चार कूट हैं उनमें अपने अपने नामके धारक ही देव निवास करते हैं । मेरुकी उत्तर पूर्व दिशा में नीलाचल से दक्षिण और कच्छ देशसे पश्चिम की ओर माल्यवान नामका क्षार पर्वत है । यह भी गजदंतके नामसे प्रसिद्ध है । यह नीचे बीचमें और ऊपर सब जगह वैडूर्यमणिमयी है । यह चौडाई लंबाई ऊंचाई गहराई और आकारसे गंधमादन वक्षार पर्वत के ही समान है । इस माल्यवान् वक्षार पर्वत के ऊपर मेरु पर्वत के समीपमें एक सिद्धायतनकूट है और उसका परिमाणगंधमादन वक्षार पर्वतके सिद्धायतन कूट के ही समान समझ लेना चाहिये । इस सिद्धायतनकूट के ऊपर एक जिनमंदिर है और उसकी उत्तर दिशामें क्रमसे माल्यवान कूट १ उदक्कुरुकूट २ कच्छविजयकूट ३ सागरकूट ४ रजंतकूट ५ पूर्णभद्रकूट ६ सीताकूट ७ इरिकूट ८ और महाकूट ९ ऐसे नामवाले नव कूट हैं । इनमें सागर कूट पर सुभगा नामकी दिक्कुमारीका निवासस्थान है । रजतकूट पर भोगमालिनी Sainathaकुमारीका निवासस्थान है एवं शेष सात कूटों पर अपने अपने कूटोंके नामधारी देवोंका निवास है । मेरु पर्वतसे उत्तर, गंधमादन वक्षारगिरिसे पूर्व, नीलाचलसे दक्षिण और माल्यवान् पर्वतसे पश्चिम की ओर उत्तरकुरु भोगभूमि है । यह उत्तरकुरु भोगभूमि पूर्व पश्चिम लंबी और उत्तर दक्षिण चौडी है । तथा यमक नामक दो पर्वत, पांच सरोवर और सौ कांचन पर्वतोंसे अत्यंत शोभायमान है । इस उत्तरकुरु भोगभूमिका उत्तर दक्षिण विस्तार ग्यारह हजार आठसै बियालीस योजन और एक १०८ 1 अध्याय ३ ८५३
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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