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________________ अध्याय यहाँपर नारक शब्दका उल्लेख किया गया है वहांपर यह प्रश्न उठता है कि वे नारकी कौन हैं ? इसलिए ' नारकियों के प्रतिपादनके लिये सबसे पहिले वे जहां पर रहते हैं उस स्थानका कथन किया जाता हैरत्नशर्करावालुकापंकधूमतमोमहातमःप्रभाभूमयो घनांबुवाताकाश प्रतिष्ठाः सप्ताधोऽधः॥१॥ रत्नप्रभा शर्कराप्रभा वालुकाप्रभा पंकप्रभा घूमप्रभा तमःप्रभा और महातमःप्रभा ये सात भूमियां हैं और क्रमसे एकके नीचे दूसरी दूमरीके नीचे तीसरी इस प्रकार नीचे नीचे तीन वातवलय और आकाशके आश्रय स्थिर हैं अर्थात् समस्त भूमियां घनोदधिवातवलयके आधार हैं। घनोदधिवातवलय । घनवातवलयके आधार है । घनवातवलय तनुवातवलयके आधीन है तनुवातवलय आकाशके आधार है और आकाश अपना आधार आप है। रत्नादीनामितरेतरयोगे द्वंद्वः॥१॥ रत्नं च शर्करा च वालुका च पंकश्चधुमश्च तमश्च महातमश्च रत्नशर्करावालुकापंकघूमतमोमहा३ तमांसि, यह यहाँपर रत्न शर्करा आदि शब्दोंका आपसमें इतरेतरयोग द्वंद्व समास है। ___प्रभाशब्दस्य प्रत्येक परिसमाप्तिर्मुजिवत् ॥२॥ जिस तरह 'देवदत्त जिनदत्त और गुरुदत्त भोजन करें' यहांपर भुजि क्रियाका देवदत्त आदि सबके साथ संबंध है उसी प्रकार सूत्रमें जो प्रभा शब्द है उसका भी रत्न आदि सबोंके साथ संबंध है। उससे रत्नप्रभा शर्कराप्रभा वालुकाप्रभा धूमप्रभा तमःप्रभा और महातम प्रभा इस प्रकार भूमियोंके नाम समझ लेना चाहिये। ७७१
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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