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अगास
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मेरुपर्वतको चल विचल कर देना, समस्त भूमंडलको उलेट पुलट देना आदि सामर्थ्य वैकियिक शरीरकी है। किसी भी पदार्थके द्वारा शक्तिका प्रतिघात न होना यह आहारक शरीरकी सामर्थ्य है। 8 यदि यहां पर यह शंका की जाय कि
वज्र पटल आदिसे वैक्रियिक शरीरका भी प्रतिघात नहीं होता इसलिये इसकी सामर्थ्य भी अप्रतिहत है फिर आहारक शरीरको ही अप्रतिहत सामर्थ्यवाला क्यों बतलाया गया है ? सो ठीक नहीं। इंद्र हूँ है सामानिक त्रायस्त्रिंश आदि सभी देव वैकियिक शरीरके धारक हैं परंतु उनकी सामर्थ्यमें अधिकता है
और हीनता है । इंद्रकी सामर्थ्य सबसे अधिक है । उससे कम सामानिक देवोंकी है उससे कम त्राय- स्त्रिंश देवोंकी है इत्यादि कमसे नीचे नीचके देवोंमें सामर्थ्यकी हीनता है इसलिये हीनाधिकताके कारण,
नीचे नीचेके देवोंकी सामर्थ्य ऊपर ऊपरके देवोंकी सामर्थ्यसे प्रतिहत कर दी जाती है तथा अनंतवीर्य ६ नामके यतिन इंद्रकी सामर्थको प्रतिहत कर दिया था ऐसा शास्त्रका उल्लेख भी है इसलिये वैकियिक * शरीरकी सामर्थ्य प्रतिहत हो जानेके कारण वह अप्रतिहत सामर्थ्यवान् नहीं हो सकता किंतु समस्त हूँ
आहारक शरीरोंकी सामर्थ्य समानरूपसे है-एक दूसरेसे प्रतिहत नहीं हो सकता इसलिये आहारक है शरीर ही अप्रतिहत सामर्थ्यवान है। ___यदि कोपका संबंध होगा तो तेजस शरीर जलाकर खाक करनेकी सामर्थ्य रखता है और यदि प्रसन्नताका संबंध होगा तो अनेक प्रकारके उपकार कर सकता है इसलिये कोप और प्रसन्नताकी अपेक्षा तेजस शरीरकी जलाना और उपकार करना दोनों प्रकारकी सामर्थ्य है और समस्त कर्मोंको अवकाश दान देना यह कार्मण शरीरकी सामर्थ्य है। इसप्रकार सामर्थ्यकी अपेक्षा भी औदारिक आदि शरीरों में भेद है। ७५.
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