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BOORBASIRAHLUCRISPECARE
'आहारक शरीर शुभ विशुद्ध और अन्याघाती है' यह बतलानेकेलिये सूत्रमें आहारक शरीरका उल्लेख है।
प्रमत्तसंयतगृहणं खामिविशेषप्रतिपत्त्यर्थ ॥६॥ है जिससमय मुनि आहारक शरीरकी रचनाकेलिये उद्यत होते हैं उससमय वे प्रमच हो जाते हैं इस. हूँ लिये आहारक शरीरका कौन स्वामी है ? यह बतलानेकेलिए सूत्रमें 'प्रमचसंयत' शब्दका उल्लेख हूँ किया गया है।
___इष्टतोऽवधारणार्थमेवकारोपादानं ॥७॥ 'प्रमचसंयतस्यैव' यहां पर जो एव शब्दका उल्लेख किया गया है वह प्रमत्तसंयमी मुनिके ही ६ आहारक शरीर होता है अन्यके नहीं, यही समझा जाय किंतु प्रमचसंयमीके आहारक ही शरीर होता है है औदारिक आदि नहीं इसलिये उसके औदारिक आदि शरीरोंकी निवृचि है, यह न समझा जाय इस इष्ट अवधारणकलिये सूत्रमें एव शब्दका उल्लेख किया गया है। एषां शरीराणां परस्परतः संज्ञाखालक्षण्यस्वकारणस्वामित्वसामर्थ्यप्रमाणक्षेत्रस्पर्शनकालांतरसंख्या
प्रदेशमावाल्पबहुत्वादिभिर्विशेषोऽवसेयः॥८॥ औदारिक वैकियिक आदि पांचों शरीरोंमें संज्ञा स्वलक्षण स्वकारण स्वामित्व सामर्थ्य प्रमाण क्षेत्र स्पर्शन काल अंतर संख्या प्रदेश भाव और अल्पवहुल आदिसे आपसमें भेद माना गया है । जो अर्थ है ऊपर कहा गया है और जो नहीं कहा गया है उन दोनोके संग्रहके लिये अर्थात् शरीरोंकी संज्ञा आदि कुछ बातें कह दी गई हैं और बहुत सी नहीं कही गई हैं उन दोनों के संग्रहार्थ यह वार्तिक कही गयी है है । वह संज्ञा आदिका भेद इसप्रकार है
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