SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 750
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ है मम्पाव SCRISTRIESORRESISTREKK FASEASEARCISFECTECEBPos है सो ठीक नहीं। जिसतरह संख्यातके संख्याते भेद माने हैं उसीप्रकार अनंतके भी अनंत भेद माने हैं। है इसलिये अनंतके भी अनंत भेद होनेसे तैजस और कार्मण दोनों समान नहीं कहे जा सकते किंतु * तेजससे कार्मण शरीर प्रदेशोंकी अपेक्षा अनंतगुणा है। आहारकादुभयोरनंतगुणत्वमिति चेन्न परंपरमित्यभिसंबंधात् ॥२॥ आहारक शरीरसे तैजस और कार्मण शरीर अनंतगुणे जान पड़ते हैं तैजससे कार्मण अनंत६ गुणा नहीं इसलिये आहारकसे जब दोनों समानरूपसे अनंतगुणे हैं तब दोनों समान ही हुए? सो भी हूँ ठीक नहीं परं परं सूक्ष्म इस सूत्रसे यहांपर 'परं परं' की अनुचि आरही है इसलिये आगे आगेके हूँ है अनंतगुणे हैं अर्थात् आहारकसे तैजस शरीर अनंतगुणा है और तैजससे कार्मण शरीर अनंतगुणा है है, यह यहां तात्पर्य है इसलिये उपर्युक्त शंका ठीक नहीं । शंका-- परस्मिन् सत्यारातीयस्यापरत्वात् परापर इति निर्देशः॥ ३ न वा बुद्धिविषयव्यापारात ॥४॥ सब शरीरोंके अंतमें रहनेके कारण कार्मण शरीर पर है और उसके समीपमें कहे जानेके कारण ६ तैजस शरीर अपर है इसलिए "अनंतगुणे परे” परे के स्थानपर परापरे ऐसा निर्देश करना चाहिए केवल पर शब्दके उल्लेखसे तैजस कार्मण दोनों शरीरोंका उल्लेख नहीं हो सकता ? सो ठीक नहीं। तेजस * शब्दके बाद कार्मण शब्दका उल्लेख है इसरीतिसे शब्दोंके उच्चारणकी अपेक्षा तैजस और कार्मणको यहां पर नहीं कहा गया है किंतु बुद्धिसे तैजस और कार्मणको तिरछा बरावर रखकर आहारकसे वे । दोनों पर हैं ऐसा समझकर उन दोनोंको पर माना है इसरीतिसे जब परशब्दसे तैजस और कामण दोनों । ७३. का ग्रहण सिद्ध है तब परे के स्थानपर 'परापरे' निर्देशकी कोई आवश्यकता नहीं । अथवा ISTA TE
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy